Saturday, June 21, 2008

गिरावट से सबक सीखने का वक्त

नीरज
सेंसेक्स एक बार फिर सुर्खियों में है, लेकिन इस बार अपनी ऊंचाइयों को लेकर नहीं बल्कि बीते दिनों आई जबरदस्त गिरावट को लेकर। 21 व 22 जनवरी को सेंसेक्स की सूनामी में करोड़ों बहने से पूर्व जो निवेशक टाटा की लखटकिया में सुहाने सफर के सपने संजो रहे थे, वो अब दुपहिया खरीदने तक की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं. कारण साफ है, जेब खाली है, और बैंक पहले ही खाली कर चुके हैं. जिन निवेशक ने थोड़े ही वक्त में ज्यादा कमाने के इरादे से सेंसेक्स की सीड़ी पर पैर जमाने का प्रयास किया था उनके पास अब आंसू बहाकर पांव सहलाने के अलावा कोई चारा नहीं बचा है. दरअसल सेंसेक्स की रफ्तार जितनी तेजी से ऊपर जा रही थी उससे कहीं न कहीं यह दशा (अंदेशा) तो था कि यह लुढक सकता है, मगर इतनी तेजी से लुढकेगा यह किसी ने नहीं सोचा था. इस गिरावट ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि सेंसेक्स हमेशा ऊपर की तरफ ही नहीं जाता, बाजार में नीचे गिरने का रास्ता भी मौजूद होता है. वैसे भी शेयर बाजार में तीव्र तेजी का दौर ज्यादा लंबे समय तक नहीं टिक सकता. बाजार में छाई मंदी और उसके कारणों की गहराई में उतरने से पहले यह समझना बेहतर होगा कि शेयर और शेयर बाजार आखिर होता क्या है.
शेयर बाजार वास्तव में वह जगह या बाजार होता है जहां प्रतिभूतियों के खरीददार एजेंटो के माध्यम से शेयर का लेन-देन करते हैं. शेयर धारक को कंपनी के स्वामित्व में उसके द्वारा खरीदे गये शेयरों के अनुपात में भागीदारी प्राप्त होती है. किसी भी बाजार में गिरावट का सीधा सा एक ही कारण होता है, खरीददारों की कमी और बेचने वालों की अधिकता. 21 व 22 को भी कुछ ऐसा ही हुआ. भारतीय बाजारों में विदेशी निवेश बड़ी मात्रा में है. सेंसेक्स की 30 महत्वपूर्ण कंपनियों में तो विदेशी संस्थागत निवेशकों की भागीदारी जबरदस्त है. ऐसे में अमेरिकी अर्थव्यवस्था चरमराने से घबराए विदेशी निवेशक चौतरफा बिकवाली कर रहे हैं, जिसकी वजह से सेंसेक्स का यह हाल हो रहा है. अमेरिका में यह हालात ऐसे समय पैदा हुए हैं जब सालों से अच्छा कर रही अर्थव्यवस्था को देखते हुए अमेरिकी बैंकों ने ऐसे लोगों को भी मकान खरीदने के लिए कर्ज दे डाले जो लौटाने की हैसियत नहीं रखते थे. कुछ वक्त बाद जब बैंकों को इस बात का इल्म हुआ कि उनके भंडार में उतना पैसा नहीं जितना वो सोच कर चल रहे थे तो घबराए बैंकों ने कर्ज देना बंद कर दिया. यहां तक कि सहायक बैंकों तक को पैसा देने से इंकार कर दिया और बाजार में पैसे की किल्लत हो गई. जिसके चलते पूरी की पूरी अर्थव्यवस्था डगमगा गई और यूरोप से लेकर एशिया तक के शेयर बाजार औंधे मुंह गिर पड़े. बाद में जब अमेरिकी राष्ट्रपति ने राहत पैकेज की घोषणा की तब कहीं जाकर बाजार ने सांसे लेना शुरू किया. यह सांसे अब कब तक चलेंगी यह कहना अभी जरा मुश्किल हैं. वैसे शेयर बाजार में गिरावट का यह सिर्फ एक पहलू है, इसकी दूसरी वजह है बाजार में तेजी से पैर फैलाते शॉट टर्म सट्टेबाज. एक समय था जब शेयर कारोबार में गिने -चुने लोग ही उतरा करते थे. मगर अब तो जैसे बाढ़ सी आ गई है. हर दूसरा व्यक्ति शेयर के खेल में अपनी किस्मत आजमाने में लगा हुआ है. यहां तक कि लोग उधार उठा-उठाकर बाजार में पैसा फंसाए बैठे हैं. इस उम्मीद में कि दुगना रिटर्न मिलेगा. हालिया गिरावट को अगर छोड़ दिया जाए तो बाजार ने पिछले कुछ वक्त में ऊंचाई का जो मुकाम हासिल किया है. उससे लोगों को यह लगने लगा है कि यहां निवेश करके एक ही रात में लखपति बना जा सकता है. जबकि तारीख़ गवाह है कि जिसने भी बाजार में लंबा टिकने का साहस दिखाया है, मुनाफा भी उसी ने कमाया है. अक्सर छोटे निवेशक मंदी के दौर में डूबने के डर से बाजार से निकलने की जल्दबाजी में धड़ाधड़ बिकवाली करके बाजार का बैंड बजा देते हैं. बाजार में मौजूदा उथल-पुथल का जो दौर चल रहा है उसके लिए हर कोई अमेरिका को कठघरे में खड़ा कर रहा है, मगर जब बाजार बेलगाम घोड़े की तरह ऊपर की तरफ भागा जा रहा था, क्या तब किसी ने सोचा था कि इसका क्रेडिट किसे दिया जाए?. सरकार अपनी पीठ थपथपाए नहीं थक रही थी कि हमारी अर्थव्यवस्था मजबूत हो रही है. वित्तमंत्री तो अब भी यही दिलासा दिलाए जा रहे हैं कि घबराने की कोई जरूरत नहीं है. पर क्या अपनी गाढ़ी कमाई को डूबते देख भला कोई मुस्कुरा सकता है? सच तो यह है कि बाजार अभी कितने गोते और लगाएगा, इस बात का अंदाजा तो खुद वित्तमंत्री को भी नहीं होगा. असल बात तो यह है कि विदेशी पूंजी का शेयर बाजार में जब तक प्रवाह बना रहा, सेंसेक्स आसमान छूता रहा और जैसे ही यह प्रवाह रुका आसमान से जमीन पर आने में ज्यादा वक्त नहीं लगा. यह गिरावट एक तरह से सरकार के लिए सबक है, क्योंकि भारतीय बाजार में विदेशी निवेश को लेकर हमारे यहां कोई गाइडलाइन निर्धारित नहीं है. विदेशी निवेशक अपनी मनमर्जी के मालिक होते हैं. उनका जब दिल चाहेगा, जितना चाहेगा लगाएंगे और जब मुनाफा नहीं दिखेगा हाथ खड़े करके निकल जाएंगे. समय-समय पर कई वित्तीय संस्थान और प्रख्यात उद्योगपति राहुल बजाज भी विदेशी निवेश पर नियंत्रण की बात कहते रहे हैं.
लिहाजा इस दिशा में ठोस कदम उठाने की जरूरत है. इसके साथ ही मौजूदा हालात से इतर शेयर बाजार में निवेश को लेकर जो अंदेशे रह-रहकर जताए जाते रहे हैं, उन पर गंभीरता से विचार किए जाने की आवश्यकता है. आतंकवादियों द्वारा निवेश के लेकर खुद वित्तमंत्री भी चिंता जाहिर कर चुके हैं. ऐसे में, सेबी और दूसरी नियामक संस्थाओं को अधिक से अधिक जिम्मेदार बनाने के रास्ते ढूंढे जाने का सही समय आ गया है. यह ठीक है कि उदारीकरण के लाभ के साथ ही हम उसके जोखिम से बच नहीं सकते. लेकिन जिस रफ्तार से शेयर बाजार ऊपर बढ़ रहा था, उसकी परिणति का ठीक-ठीक आकलन अगर हुआ होता, तो लगातार दूसरे दिन कारोबार को एक घंटे के लिए बंद करने की नौबत नहीं आती. शेयर बाजार से आम आदमी का भले ही सीधा संबंध नहीं हो, लेकिन कहीं न कहीं उसके हितों पर असर तो पड़ता ही है. आखिर देश के कई सरकारी-अर्ध्द सरकारी वित्तीय संस्थान पूंजी बाजार में निवेश करते हैं. यदि इस गिरावट का उनकी आर्थिक सेहत पर असर पड़ता है, तो स्वाभाविक रूप से उनके ग्राहक और उपभोक्ता भी प्रभावित होंगे. शेयर का खेल हमेशा से ही जोखिम भरा रहा है. मगर जितना जोखिम आज हो गया है इतना पहले कभी न था. कारण साफ है, मुनाफा कमाने की जितनी संभावनाएं बढ़ेंगी, जोखिम का स्तर भी उतना ही बढ़ेगा. पहले बाजार में ऊछाल कछुआ गति से होता था मगर अब एक-दो सालों में ही दो गुने-तीन गुने तक पहुंच रहा है. ऐसे में खतरा बढ़ना लाजमी है.
दरअसल पहले विदेशी संस्थागत निवेशकों की बाजार में भूमिका इतनी बढ़ी नहीं थी जितनी आज है. विदेशी निवेशक मुनाफा कमाने के इरादे से धड़ाधड़ पैसा लगाते हैं तो बाजार बल्ले-बल्ले करता है. और जब वही धड़ाधड़ बिकवाली करते हैं तो मातम छा जाता है. शेयर बाजार में गिरावट के लिए कुछ हद तक रिलायंस पावर को भी दोषी करार दिया जा सकता है. कुछ दिन पहले ही रिलायंस पावर लिमिटेड के आइपीओ की रिकॉर्ड बिक्री हुई थी. उस बिक्री का एक दिलचस्प पहलू यह था कि शेयर होल्डरों ने अपने शेयर बेचकर आरपीएल के शेयरों की खरीद की. बाद में विदेशी संस्थागत निवेशक भी इस शुरूआत का हिस्सा बने जिसके चलते बाजार डगमगा गया. बाजार के स्वभाव के बारे में वैसे तो कुछ भी कठिन है मगर इतना तो कहा ही जा सकता है कि जिस तरह ऊंचाई की उड़ान लंबे समय तक नहीं रही, उसी तरह मंदी का अंधियारा भी ज्यादा देर तक नहीं टिक सकता. लेकिन फिर भी जानकारों का मानना है कि शेयर बाजार अभी एक और गोता लगा सकता है. लिहाजा निवेशकों को काफी सोच समझकर इस खेल में अपने हाथ आजमाना चाहिए. ऐसे मूल्य वाले शेयरों के मामले में खासी सतर्कता बरतने की जरूरत है जिनके दाम में अचानक तेजी आई है. फिलहाल अच्छे शेयरों को होल्ड कर सुधार की स्थिति तक इंतजार करना बेहतर होगा.
नीरज नैयर

1 comment:

ताऊ रामपुरिया said...

नीरज जी, आपने शेयर बाजार से सम्बन्धित उपयोगी जानकारी दी है और अगले ही लेख मे आपने भारत पाक सम्बन्धों पर प्रकाश डाला है । सच मे मुझे १९६५ और १९७१ के युद्धों की याद ताजा हो आई । पढते २ उस समय काल मे पहुंच गया । जब बारिकपुर (कोलकाता) मे १९६५ के युद्ध मे बम गिरा था , उसकी आवाज आज भी
कानों मे गूंज रही है । अति सुन्दर जानकारी के साथ साथ सुन्दर लेखनी का सन्गम ।
ऐसा लग रहा है उस समय का "विश्वामित्र" (जो कोलकाता से निकलता था) अखबार अभी पढा है । बधाई ...
शुभकामनाएं


पी. सी. रामपुरिया (मुदगल)