Friday, January 16, 2009

कुछ भी ठीक नहीं है भारतीय सेना में

नीरज नैयर
बचपन से हम भारतीय सेना के पराक्रम, शौर्य, अनुशासन, ईमानदारी और जिंदादिली के किस्से सुनते आए हैं इसलिए हमारा दिलो दिमाग सहज ही इस बात को मानने के लिए नहीं होता कि सेना में कुछ भी गलत हो सकता है. जब कभी सेना के किसी जवान या अफसर की अपराध में संलिप्तता की खबरें आती हैं तो हमें उसमें षड़यंत्र की धुंध दिखाई देने लगती है. मालेगांव धमाके इसका सबसे ताजा उदाहरण है. सेना को हम ऐसी संस्था के रूप में देखते हैं जहां केवल देश पर मर मिटने का जज्बा जगाया जाता है. जहां भ्रष्टाचार, विलासिता जैसे शब्दों के लिए कोई जगह नहीं होती. आपात स्थितियों में सेना जिस फरिश्ते की सी भूमिका में सामने आती है उसे हमारा दिमाग कभी भूलने को तैयार नहीं होता. लेकिन हकीकत अक्सर बिल्कुल वैसी नहीं होती जैसी हम कल्पना करते हैं, सेना पर भी ये बात लागू होती है.
पिछले कुछ वक्त में सेना की वर्दी पर जितने दाग लगे हैं वो यह साबित करने के लिए काफी हैं कि अनुशासन की ऊंची-ऊंची दीवारों के पीछे कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है. यौन उत्पीड़न, बलात्कार, भ्रष्टाचार और भेदभाव जैसे अस्वीकार्य शब्द जो अब तक पुलिस महकमे की शोभा बढ़ाते रहे हैं. अब फौजी वर्दी के साथ भी जुड़ने लगे हैं. हालांकि इसमें कोई दो राय नहीं कि फौज की ईमानदारी को पुलिस के साथ तौलकर नहीं देखा जा सकता. फौज में जहां अनैतिक कृत्यों के एक-दो मामले सामने आते हैं. वहीं पुलिस में ऐसी लंबी-चौड़ी फेहरिस्त है, लेकिन फिर भी सच यही है कि कायदे+कानून की अभेद समझे जाने वाली दीवार में दरारें पड़ने लगी हैं. अभी हाल में ही सेना के दूसरे सबसे बडे अधिकारी की भ्रष्टाचार में लिप्तता का सामने आया मामला इन दरारों की चौड़ाई को खुद ब खुद बयां कर रहा है. सेना में भ्रष्टाचार ऊपरी स्तर पर किस कदर फैल चुका है. यह मामला इसकी बानगी भर है. कैग भी अपनी रिपोर्ट सेना में तेजी से फैलते भ्रष्टाचार का खुलासा कर चुका है.
कैग की रिपोर्ट में ही यह सच सामने आया था कि किस तरह से कुछ बड़े सैन्य अधिकारी सिक्किम और सियाचिन में तैनात जवानों की जिंदगियों का सौदा अपनी जेबें भरने के लिए कर रहे थे. जूतों की खरीद में अनियमितताओं के इस मामले को कैग ने 328 जवानों की मौत की वजह भी ठहराया था. 2005 में सौदा निरस्त करने के बाद भी सेना सालों तक इटली की एक कंपनी से खराब जूते खरीदती रही, यह जानने के बाद भी कि वो-15 डिग्री तापमान के बाद काम करना बंद कर देते हैं. ऐसे ही पेट्रोल की जगह पानी सप्लाई के मामले ने भी सेना में स्वार्थता और भ्रष्टाचार की परतों को उजागर किया था. घाटी में तैनात एक बिग्रेडियर लंबे समय तक सियाचिन में तैनात जवानों को पेट्रोल की जगह पानी की सप्लाई करता रहा. जब जम्मू-कश्मीर पुलिस ने इस गोरखधंधे से पर्दा उठाया तो सेना में भूचाल आ गया, लेकिन थोड़े ही वक्त में सबकुछ ऐसे शांत हो गया जैसे कुछ हुआ ही न हो.
सेना के संगठनात्मक ढांचे में भ्रष्टाचार का बहाव न तो ऊपर से नीचे की ओर है और न ही नीचे से ऊपर की ओर. यह केवल ऊपरी सतह पर अपनी पकड़ बनाए हुए है. निचले स्तर पर न तो इतने अधिकार होते हैं और न ही इतनी हिम्मत की वो ऐसे-वैसे काम में हाथ डाल सकें. कई सैन्य अधिकारी खुद इस बात को दबी जबान से स्वीकार करते हैं कि कभी-कभी उन्हें आलाधिकारियों के ऐसे काम भी करने पड़ते हैं. जो आर्मी मैन्यूअल के खिलाफ हैं क्योंकि ऐसा न करने की दशा में उन्हें अनुशासनहीनता का तमगा लगाकर बाहर का रास्ता दिखाए जाने का डर होता है. भ्रष्टाचार के साथ-साथ महिला मुद्दे पर भी सेना जब तक कठघरे में खड़ी दिखाई देती है. मेजर जनरल स्तर तक के बड़े अधिकारी पर भी दर्ुव्यवहार के आरोप लग चुके हैं. जम्मू-कश्मीर के लेह जिले में तीसरी इन्फैंट्री में तैनात मेजर जनरल एके लाल पर कैप्टन नेहा रावत ने दर्ुव्यवहार का आरोप लगाकर सेना को हिलाकर रख दिया था. यह पहला मौका था जब इतने बड़े अफसर को ऐसे मामले ने जांच का सामना करना पड़ा हो. महिला अधिकारी ने योग की एक कक्षा के दौरान वरिष्ठ अधिकारी के व्यवहार पर आपत्ति जताई थी. योग कक्षा का आयोजन मेजर जनरल लाल ने ही किया था.
वायुसेना की एक महिला अफसर ने भी ऐसी ही शिकायत की थी लेकिन उसे इसकी कीमत अपनी नौकरी से हाथ धोकर चुकानी पड़ी. सेना में महिला अधिकारियों से दर्ुव्यवहार और शोषण के कई मामले सामने आ चुके हैं. जम्मू में तैनात कैप्टन मेघा राजदान की रहस्यमय परिस्थितियों से हुई मौत को इसी नजरिये से देखा गया था. उनके पिता ने हत्या की आशंका जाहिर करते हुए वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों पर उंगली उठाई थी. एक अन्य महिला अफसर सुष्मिता चक्रवर्ती की मौत को भी उनके परिवार ने हत्या करार दिया था. बावजूद इसके सैन्य अधिकारी बेहतर चैनल सिस्टम की दुहाई देते नहीं थकते. अनुशासन की दीवार फांदकर सामने आए इन चंद मामलों के अलावा सेना के लिए सबसे घातक साबित हो रहा है बाहरी तौर पर उसकी धूल-धूसरित होती छवि. सैन्य अफसरों पर न सिर्फ बलात्कार जैसे संगीन आरोप लग रहे हैं बल्कि साबित भी हो रहे हैं. कश्मीर में सेना की छवि को मेजर रहमान हुसैन की करतूतों ने खासा प्रभावित किया था. रहमान पर तीन महिलाओं के साथ बलात्कार का आरोप था. जिसे लेकर बड़े पैमाने पर घाटी में विरोध प्रदर्शन भी हुए थे. सेना ने पहले तो सभी आरोपों को खारिज कर दिया था लेकिन बाद में उसे जांच का आदेश देने के बाद कोर्ट मार्शल की कार्रवाई शुरू करनी पड़ी. अपनी छवि को सुधारने के लिए 15 सालों में यह पहली बार था जब सेना ने किसी अफसर के खिलाफ कोर्ट मार्शल का इतना प्रचार किया. पिछले कुछ सालों से सेना में स्थितियां लगातार खराब होती जा रही हैं.
अधिकारियों की कमी से जूझने के साथ-साथ उसे ऐसे मोर्चों पर भी जूझना पड़ रहा है जिनसे कभी उसका वास्ता नहीं रहा. तरक्की के लिए फर्जी मुठभेड़ के जो आरोप पुलिस को परेशान करते रहे थे वो अब सेना का भी हिस्सा बन गये हैं. जम्मू-कश्मीर में जिस तरह से मौलवी शौकत नाम के शख्स को घर से उठाकर फर्जी मुठभेड़ में मार गिराने के बाद उसे पाकिस्तानी चरमपंथी अबू जाहिद बताना और उसके शव को श्रीनगर से 50 किलोमीटर दूर दफन कर देना यह साबित करने के लिए पर्याप्त है कि सेना भी पुलिस की राह पर चल निकली है. इस मामले ने पूरी घाटी में सेना के खिलाफ व्यापक माहौल तैयार करने में अहम भूमिका निभाई थी. सेना में वैसा कुछ भी नहीं चल रहा है जैसा अब तक हम सोचते आ रहे हैं. भ्रष्टाचार से लेकर शोषण जैसी कुरुतियां वहां अपनी पैठ बना चुकी हैं. शौर्य, अनुशासन और ईमानदारी जैसे शब्द अब उसका साथ छोड़ने लगे हैं.
नीरज नैयर

Tuesday, January 6, 2009

अब तो हमें चीन को समझना होगा

नीरज नैयर
चीन की कुटिलता किसी से छिपी नहीं है लेकिन मुंबई हमले पर जिस तरह की खामोशी वो अख्तियार किए हुए हैं उसके बाद ड्रैगन से रिश्तों की पुर्नसमीक्षा आवश्यक हो गई है. आज जहां पूरा विश्व पाकिस्तान की मुखालफत में भारत के साथ खड़ा दिखाई दे रहा है वहीं चीन अब भी दोहरी चालें चलने में लगा है. एक तरफ वह संयुक्त युध्दभ्यास के बहाने हमसे रिश्ते सुधारने का दिखावा करता है तो दूसरी तरफ हमारे दुश्मन की तामीरदारी करके हमें कमजोर बनाने की कोशिश. मुंबई हमले की साधारण शब्दों में निंदा करके चीन ने महज रस्म अदायगी की है. उसने एक बार भी अमेरिका, ब्रिटेन की तरह पाक के खिलाफ कड़े शब्दों का प्रयोग नहीं किया, उसने एक बार भी पाक को यह हिदायत देने की जहमत नहीं उठाई कि वो आतंकवादियों पर लगाम कसे. जबकि एक पड़ोसी होने के नाते उसका यह फर्ज़ बनता था.
तिब्बत मसले पर जिस तरह अंतरराष्ट्रीय समुदाय की आलोचना के बावजूद भारत ने चीन से दोस्ती को नभाया था, चीन वैसा कुछ करता नजर नहीं आ रहा। उल्टा वो पाक को यह भरोसा दिलाने में लगा है कि अगर भारत सैन्य कार्रवाई करता है तो वो इस्लामाबाद का साथ देगा.


चीन के प्रधानमंत्री पाकिस्तानी हुक्मरानों को आश्वस्त कर चुके हैं कि उन्हें बीजिंग का पूरा समर्थन प्राप्त है. चीन का झुकाव शुरू से ही पाकिस्तान की तरफ ज्यादा रहा है. भारत से उसकी दोस्ती महज मुनाफे तक ही सीमित रही है. उसके नेता भारतीय नेतृत्व को बुलाते हैं, उनका भव्य स्वागत करते हैं, बेहतर संबंधों की आस बांधते हैं, सुनहरे वादे करते हैं और व्यापार बढ़ाने के समझौतों पर हस्ताक्षर कर बाकी मसलों को कूड़े की टोकरी में डाल देते हैं.
चीन 1962 के बाद से ऐसा ही करता आ रहा है. हालंकि पहले उसका मिजाज कुछ कड़क था जिसमें वक्त के साथ-साथ कुछ नरमी आई है लेकिन वो भी अपने फायदे के लिए. भारत और चीन के बीच 40 अरब डॉलर से ज्यादा का व्यापार है. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के चीन यात्रा के वक्त दोनों देश 2010 तक इसे 60 अरब डॉलर करने पर समहत हुए थे. जबकि 1999 में दोनों देशों के बीच सिर्फ 2 अरब डॉलर का ही व्यापार था. 2007 में चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापार सहयोगी बनकर उHkरा था. पिछले साल भारत चीन में व्यापार में लगHkग 57 फीसदी का इजाफा भी हुआ था. चीनी कंपनियां भारतीय बाजार में लगातार पैठ बनाए जा रही है. मोबाइल फोन से लेकर लक्ष्मी गणेश की मूर्तियों तक मेड इन चाइना का बोलबाला है. चीन हर साल अपना सस्ता मद्दा माल भारतीय बाजारों में खपाकर अरबों कमा रहा है और भारतीय कंपनियों के लिये परेशानी बड़ा रहा है. आर्थिक के साथ-साथ चीन सामरिक मोर्चे पर भी हमें कमजोर करने में लगा है. वह पाकिस्तान के हाथ मजबूत कर रहा है. ताकि जब चाहे उनका इस्तेमाल भारत के खिलाफ कर सके.
खुफिया एजेंसी रॉ के शीर्ष अधिकारी भी स्वीकारते रहे हैं कि चीन का पाकिस्तान को आंख मूदकर सामरिक साझीदार बनाने का कदम चौंकाने वाला है. उसे उद्धपोत, मिसाइल, हथियार और अत्याधुनिक एयरक्राफ्ट देना उसकी मंशा पर शक करने के लिए काफी है. वैसे चीन का यह रुख कोई नया नहीं है. वह शुरू से ही Hkारत विरोधी मुहिम की अगुवाई करता रहा है. उसने भारत के परमाणु परिक्षण की दिल खोलकर आलोचना की मगर चुपके से पाकिस्तान को यह तकनीक उपलब्ध करा दी. वह चीन ही था जिसने सुरक्षा परिषद में भारत की स्थाई सदस्यता की मांग का पुरजोर विरोध किया था.जबकि 1949 में भारत की सिफारिश की बदौलत ही चीन को संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता हासिल हुई थी. मुंबई हमले में अपने संगठनों की संलिप्तता को लेकर अंतरराष्ट्रीय समुदाय के बढ़ते दबाव के बावजूद पाक जिस अख्खड़ता के साथ भारत से पेश आ रहा है यह चीन की शह का ही नतीजा है. पूर्व में भी चीन की शह पर पाकिस्तान ऐसे ही पेश आता रहा है. 2001 में संसद पर हमले के वक्त भी उसने ऐसी ही उदंडता दिखाई थी. मई 2002 में चीन के विदेशी मंत्री ने इस्लामाबाद से यह ऐलान करके पाक के हौसले और बुलंद कर दिये थे कि Hkारत के खिलाफ हर लड़ाई में चीन पाक का साथ देगा. दरअसल चीन एशिया पर वर्चस्व की जंग लड़ रहा है. लिहाजा Hkारत की समृध्दि और अमेरिका से उसकी बढ़ती नजदीकी चीन को रास नहीं आ रही. इसलिए वो पाकिस्तान, म्यांमार, बांग्लादेश और अब नेपाल आदि देशों को मोहरा बनाकर भारत को कसने में लगा है.
नेपाल में माओवादियों की सरकार बनने के बाद चीन का प्रभाव वहां साफ नजर आ रहा है. अब तक नेपाल को लेकर भारत पूरी तरह बेफिक्र था. मगर प्रचंड के सत्ता में आने और चीन के प्रति लगाव दिखाने से उसकी परेशानी और बढ़ गई है. कहा तो यहां तक जा रहा है कि कोसी से बिहार में मची तबाही चीन के इशारे पर ही की गई थी. चीन चोरी छिपे वार करने का आदी है. वह खुलकर भारत के खिलाफ कभी नहीं बोलता. कुटनीति के जानकार भी मानते हैं कि चीन गुपचुप साजिश को अंजाम देता रहा है. कुछ समय पहले मलेशिया में जिस तरह से हिन्दुओं के साथ बर्ताव किया गया था और जिस तरह से भारत के पक्ष को मलेशिया सरकार ने हवा में उड़ाया था उसमें भी चीन की भूमिका की ही बातें सामने आई थीं. चीन की मंशा भारत को आंतरिक मसलों में उलझाकर रखने की है.
जम्मू कश्मीर के चरमपंथियों को वो समर्थन देता रहा है. नक्सलियों को भी गुपचुप बढ़ावा देने में उसने कोई कसर नहीं छोड़ी है. उसकी सीमा से घुसपैठ की खबरें भी आने लगी हैं. ऐसे में अगर मुंबई हमले में उसके अप्रत्यक्ष सहयोग की बात कही जाए तो कुछ गलत नहीं होगा. चीन भारत को कमजोर करना चाहता है. उसकी मजबूत होती अर्थव्यवस्था को नेस्तनाबूद करना चाहता है और आतंकवाद के रास्ते वो ये सब आसानी से कर सकता है. शायद इसीलिए सुरक्षा परिषद में आतंकी संगठन जमात-उद-दावा पर प्रतिबंध की राह में उसने तीन बार रोड़ा अटकाया था. मुंबई हमले के बाद चीन का जो चेहरा सामने आया है उसे ध्यान में रखकर ही भारत को अब ड्रैगन से रिश्तों का खाका तैयार करना होगा. उसे चीन को यह बताना होगा कि अगर वो भारत का साथ चाहता है तो उसे पाकिस्तान से किनारा करना होगा, अगर वो व्यापार बढ़ाना चाहता है तो उसे सीमा विवाद पर भी बात करनी होगी. उसे यह अहसास दिलाना होगा कि दोस्ती महज एक तरफ से नहीं निHkाई जा सकती
नीरज नैयर