Friday, June 12, 2009

धोनी को ले न डूबे सफलता का नशा

नीरज नैयर
कहते हैं सफलता एक ऐसा नशा है जिसका असर तब तक नहीं उतरता जब तक कामयाबी की रफ्तार मंद नहीं पड़ती. ऐसे लोग बिरले ही होते हैं जो इस नशे की खुमारी को खुद पर हावी नहीं होने देते. मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर भी ऐसे ही लोगों की जमात का हिस्सा हैं, सचिन ने कामयाबी के इतने शिखर छूए हैं कि कोई और वहां तक पहुंचने की कल्पना भी नहीं कर सकता.

सचिन ने न केवल क्रिकेट को जीया बल्कि उसे नई दिशा भी प्रदान की, दुनिया में शायद ही कोई ऐसा खिलाड़ी हो जिसने मैदान पर लिटिल मास्टर की क्रूरता और मैदान के बाहर उनकी उदारता, जिंदादिली और सबको खुश रखने की भावना को महसूस न किया हो. सचिन ही एक ऐसे खिलाड़ी हैं जिन्होंने खेल के मैदान पर भले ही बहुतरे दुश्मन बनाएं हों मगर असल जिंदगी में उनके रिश्ते सभी के साथ एक जैसे रहे. सचिन तेंदुलकर की खेल के प्रति प्रतिबध्दता और सर्मपण का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अपने पिता के देहांत के वक्त भी उन्होंने वर्ल्डकप में टीम को अकेला छोड़कर मुंबई वापस लौटना मुनासिब नहीं समझा. बावजूद इसके इस महान खिलाड़ी को आलोचनाओं के कटु अनुभवों का सामना करना पड़ा, उन्हें ढलती उम्र का हवाला देकर क्रिकेट को अलविदा कहने की सलाह तक दी गई लेकिन टूटने के बजाए सचिन ने खुद को संगठित कर पुराने रूप में पेश किया और आलोचकों को पुन: सोचने पर मजबूर कर दिया.

एक ऐसे खिलाड़ी के टीम में शामिल होने के बाद भी टीम का युवा नेतृत्व अहंकार और अहम के अंधेरे में खुद को डुबोए हुए है. कप्तान के रूप में मिल रही सफलता का नशा महेंद्र सिंह धोनी के सिर चढ़कर बोल रहा है, उन्हें अपने सामने शायद कोई और दिखाई ही नहीं पड़ रहा. वीरेंद्र सहवाग की ट्वेटी-20 वर्ल्ड कप से बिना खेले वापसी को इस नजरीए से देखा जा सकता है. सहवाग से उनके विवाद की खबरें कुछ वक्त से लगातार छन-छनकर बाहर आ रही थी, हालांकि धोनी ने इसका बराबर खंडन किया. अपनी बात को सही साबित करने के लिए वो पूरी टीम को लेकर प्रेस कांफ्रेंस में भी जा पहुंचे. लेकिन जिस तरह का रुख उन्होंने सहवाग की वापसी के बाद खबरनवीसों के समक्ष प्रदर्शित किया वह वाकई चौकाने वाला और शक-शुबहा को सच की तरफ मोड़ने वाला दिखाई पड़ता है. सहवाग की फिटनेस के बारे में जानकारी देने के लिए बुलाई गई प्रेस कॉफ्रेंस में मीडिया के तीखे सवालों से धोनी आपा खो बैठे. धोनी और मीडिया के बीच जमकर नोंक-झोंक हुई. धोनी के इस अंदाज ने कई वरिष्ठ पत्रकारों को भी हैरान कर दिया. दरअसल पूरा विवाद इस बात पर बढ़ा जब कोलकाता के एक अखबार में धोनी के हवाले से ये खबर छपी कि सहवाग की फिटनेस को लेकर धोनी का बयान जानबूझकर विरोधी टीम को गच्चा देने के लिए था. ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब धोनी ने मीडिया को गलत साबित करने के लिए ऐसे कदम उठाए हों. वह हमेशा से ही अपनी द्वंद्वता का प्रदर्शन करते रहे हैं. सहवाग तो फिर भी टीम के उपकप्तान हैं, धोनी ने तो टीम इंडिया को नए मुकाम पर पहुंचाने वाले और उसे ढृढता प्रदान करने वाले सचिन तेंदुलकर को भी निशाना बनाने की कोशिशें की. उन्होंने सीनियर खिलाड़ियों की आड़ में सचिन पर बार-बार कटाक्ष किए, उनके खेल पर उंगली उठाई. पर उन्हें टीम से डिगा नहीं सके.

अगर आपको कैप्टन बनने से पहले धोनी की प्रेस कांफ्रेंस याद हों तो आपको यह भी याद होगा कि उनका स्वभाव मौजूदा वक्त से कितना जुदा था. ये बात सही है कि जिम्मेदारी और अनुभव बढ़ने के साथ-साथ बदालव आते हैं, और बदलाव जरूरी भी लेकिन केवल तभी तक जब तक वो सही दिशा में हो रहे हों. बीते कुछ वक्त में टीम इंडिया ने जिस तरह से बुलंदियों को छुआ है, उससे धोनी बिन पंख आसमान में उड़ने लगे हैं. उन्हें लगने लगा है कि जैसे उनके बिना टीम इंडिया अपंग हो जाएगी, उनके अंदर अतिआत्मविश्वास के साथ-साथ यह भावना भी घर करने लगी है कि उनकी पदवी को कोई हिला नहीं सकता. आईपीएल के दौरान एक और खबर चर्चा में रही जिसने धोनी के व्यक्तित्व में आए नकारात्मक बदलाव को लोगों के सामने पहुंचाया. आम लोगों की तरह बॉलीवुड शहंशाह अमिताभ बच्चन ने भी धोनी को शुभकामना संदेश भेजा लेकिन जब भारतीय कप्तान की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई तो विचलित अमिताभ ने जॉन इब्राहिम से इसका जिक्र किया.

ऐसे ही आगे बढ़ते-बढ़ते यह बात मीडिया तक पहुंची और मीडिया ने तपाक से धोनी से सवाल कर डाला मगर धोनी ने शालीनता का परिचय दिए बगैर बड़े ही रुखे स्वभाव में जवाब देने से साफ इंकार कर दिया. हो सकता है कि धोनी व्यस्त्तम दिनचर्या के चलते अमिताभ का संदेश नहीं देख पाए हों, या उन्हें जवाब देने का वक्त ही नहीं मिला हो पर मीडिया के माध्यम से तो वह अमिताभ तक अपनी बात पहुंचा ही सकते थे. अंहकार का अंत केवल अंधकार में ही होता है, धोनी शायद यह बात भूल गये हैं. धोनी की माफिक ही पूर्व कप्तान सौरव गांगुली भी सफलता के नशे में मदमस्त होकर सबकुछ भूल गये थे, उनके बयानों में भी अहम झलकने लगा था. उन्होंने भी सचिन को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करने की कोशिश की थी. सचिन को दोहरे शतक से महज चंद कदम दूर रोकने के लिए उन्होंने जिस तरह से राहुल द्रविड़ को मोहरा बनाया था उसने सबको चौंकाकर रख्र दिया था. संभवत: यह पहला मौका था जब सचिन ने अपने दिल की बात कहने के लिए सार्वजनिक मंच का इस्तेमाल किया हो. और आज उनका हाल सबके समाने है. जिस तरह से क्रिकेट के चाहने वाले धोनी के बिना टीम की कल्पना भी नहीं करना चाहते ठीक वैसी ही स्थिति सौरव गांगुली की भी थी मगर फिर भी उन्हें बेआबरू होकर टीम से बाहर जाना पड़ा. बंगाल टाइगर का तमगा लगाने वाले इस खिलाड़ी को आम खिलाड़ियों की तरह टीम में जगह बनाने के लिए मशक्कत करनी पड़ी लेकिन आज भी यह तय नहीं है कि वो खेलेंगे या नहीं. सफलता के घोड़े बेलगाम होते हैं, इनकी सवारी करने वाले को लगाम कसना आना चाहिए, अगर वक्त रहते धोनी लगाम कसना सीख गये तो शायद वो उस लायक तो बन ही जाएंगे कि सचिन के आस-पास खड़े हो सकें अन्यथा उनका भगवान ही मालिक है.