नीजर नैयर
अमेरिकी हवाई अड्डे पर भारतीय राजदूत मीरा शंकर की तलाशी क्या हुई दिल्ली में बैठे राजनीतिक दलों को हो-हल्ला मचाने का मौका मिल गया। भाजपा ने तो लगे हाथ रैली भी निकाल डाली। सियासी पार्टियां इस मुद्दे पर भी सरकार को घेर रही हैं, जैसे सरकार ने खुद अमेरिकी अधिकारियों से कहा हो कि मीरा की तलाशी ली जाए। हां, वो इस बात पर जरूर सरकार को घेर सकती हैं कि केंद्र सरकार अमेरिका से किस लहजे में नाराजगी व्यक्त करती है। वैसे प्रकरण के सामने आने के तुरंत बाद विदेशमंत्रालय ने थोड़ी बहुत गर्जना जरूर की, और इसका त्वरित असर भी देखने को मिला। अमेरिकी विदेशमंत्री हिलेरी क्लिंटन ने स्वयं खेद व्यक्त करते हुए भरोसा दिलाया कि इस घटना की पुर्नवृत्ति नहीं होगी। हालांकि, अमेरिका ने ये भी साफ किया कि जो कुछ भी हुआ वो कानून के मुताबिक हुआ। अमेरिका के ट्रांसपोर्ट सिक्यूरिटी असोसिएशन (टीएसए)के तहत राजनयिकों को तलाशी में छूट नहीं दी जाती। दरअसल मीरा शंकर ने भारतीय पारंपरिक परिधान यानी साड़ी पहनी हुई थी, और टीएसए के मुताबिक तलाशी के कारणों में ढेर सारे कपड़े पहनना भी शामिल है। अब ऐसे देखा जाए तो साड़ी और बुर्के में फर्क केवल इतना ही है कि एक में चेहरा दिखता है और दूसरे में नहीं। मीरा शंकर के साथ जो गलत हुआ वो ये कि राजनयिक जैसे ओदे पर होने के बाद भी पारदर्शी बाक्स में ले जाकर उनकी हाथों से तलाशी ली गई। जबकि एयरपोर्ट अधिकारियों को दिए दिशा-निर्देशों में यह साफ किया गया है कि यदि कोई यात्री सबके सामने तलाशी नहीं देना चाहता तो उसकी जांच गोपनीय तौर पर होनी चाहिए। मीरा कुमार के साथ दूसरे कुछ अधिकारी भी, लेकिन उन्हें भी अनसुना कर दिया गया। वैसे ये कोई पहला मौका नहीं, जब अमेरिका में उच्च दर्जा प्राप्त भारतीयों को इस तरह की जांच से गुजरना पड़ा हो। पिछले साल बॉलिवुड स्टार शाहरुख खान को न्यूयार्क के लिबर्टी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर सिर्फ इसलिए रोककर पूछताछ की गई, क्योंकि उनके नाम के आगे खान जुड़ा था। इसी साल नागरिक उड्डयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल से शिकागो के ओ हेयर अड्डे पर पूछताछ की गई।
इस पूछताछ की वजह इतनी थी उनका नाम और जन्मतिथि उस शख्स से मेल खा रही थी, जो अमेरिका की वॉच लिस्ट में था। इससे पीछे चलें तो राजग सरकार में रक्षामंत्री रहे जार्ज फर्नांडीस को भी अमेरिकी एयरपोर्ट पर तलाशी से गुजरना पड़ा था, और जैसा मुझे याद है उनके तो कपड़े उतरवाकर तलाशी ली गई थी। वो घटना निश्चित तौर पर अप्रत्याशित और चौंकाने वाली थी, एक रक्षामंत्री के साथ इस तरह का व्यावहार करना कहीं से उचित नहीं माना जा सकता। लेकिन इसके बाद की जो घटनाएं हैं, उन पर इतना हो-हल्ला मचाना बिल्कुल ही जायज नहीं लगता। शाहरुख खान को बेशक भारत में स्पेशल ट्रीटमेंट दिया जाता हो, उन्हेंसुरक्षा जांच जैसे झंझटों से मुक्त रखा जाता हो मगर दूसरे मुल्कों से तो ये अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वो भी वैसे ट्रीटमेंट दें। बॉलीवुड स्टार के लिए अमेरिका अपने सुरक्षा नियमों में तो बदलाव नहीं कर सकता। 911 के बाद अमेरिकी बहुत यादा सतर्क हो गए हैं, इसमें कोई दोराय नहीं कि इस सतर्कता से अमेरिकी आवाम को भी कई बार परेशानी का सामना करना पड़ता है। लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि उस एक आतंकी हमले के बाद दहशतगर्द अमेरिका की तरफ आंख उठाने तक ही हिमाकत नहीं कर पाए हैं। अमेरिका पर हमला करने वाले अल कायदा के आतंकवादी थे, जो मूलरूप से मुसलमान थे। इसलिए अगर किसी नाम के आगे खान जुड़ा देखकर वो अति सतर्क हो जाते हैं तो इस पर बवाल मचाने वाली क्या बात है। शाहरुख खान यदि इस घटना को सामान्य तौर पर लेते तो इतना हंगामा मचता ही नहीं। इसी तरह प्रफुल्ल पटेल की बात करें तो, वो गलतफहमी का शिकार हुए। अगर उनका नाम और जन्मतिथी किसी वांछित अपराधी से मेल खाता है और जांच अधिकारियों ने उनसे कुछ सवालात पूछ लिए तो मुझे नहीं लगता कि इसमें अपमान जैसी कोई बात है। उल्टा हमें इससे सीख लेना चाहिए कि अमेरिकी अधिकारी सुरक्षा के मुद्दे पर रुतबे के दबाव में नहीं आते। अब सवाल करने वाले पूछ सकते हैं कि क्या अमेरिकी नेताओं के साथ भी होता होगा, इसका जवाब काफी हद तक हां में है। अमेरिका में जिन लोगों को सुरक्षा जांच में छूट मिली है उनकी फेहरिस्त हमारी तरह इतनी लंबी नहीं है। हमारे यहां तो एक अदना सा नेता भी रुबाब झाड़ने से पीछे नहीं हटता।
दूसरी बात अपने देश के नेताओं को सब पहचानते हैं, अगर अमेरिकी अधिकारी अपने अफसरान को कुछ रियायत देते भी हैं तो उसे गलत नहीं कहा जा सकता। कायदे में होना यही चाहिए कि जब आम आदमी को सुरक्षा के झंझावत से गुजरना पड़ता है तो वीवीआई भी इंसान ही हैं। और वैसे भी सुरक्षा नियम सबको सुरक्षित रखने के लिए ही बनाए जाते हैं। भारतीयों में समस्या ये है कि ऊंचे पद पर पहुंचने के साथ ही उनका अहम ऊंचा उठने लगता है। भारत में उन्हें सुविधाएं मिलती हैं उनके वो आदी हो जाते हैं और जब उनसे आम इंसान की तरह व्यवहार किया जाता है तो उनके अहम को चोट लग जाती है। बड़क्पपन जैसी कोई चीज हमारे अंदर बची ही नहीं है, हमारे नेताओं को अभिनेताओं को कम से कम इस मामले में तो अमेरिकियों का कायल होना चाहिए कि उनकी प्राथमिकता में राष्ट्र सुरक्षा सबसे पहले है। इस मामले में पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम का कोई जवाब नहीं, गत साल इंदिरा गांधी एयरपोर्ट पर अमेरिका की काँटिनेंटल एयरलाइंस के अधिकारियों ने कलाम साहब को जहाज में सवार होने से पहले पूरी सुरक्षा जांच से गुजारा। जबकि प्रोटोकाल के तहत भारत में उन्हें इस तरह की जांच से छूट मिली हुई है। इसके पीछे एयरलाइंस का तर्क था कि उन्हें आदेश हैं कि किसी को भी बिना तलाशी के सवार न होने दिया जाए।
इस तलाशी को लेकर एयरपोर्ट से संसद तक बहुत बवाल मचा, कई सांसदों ने तो उस एयरलाइंस का लाइसेंस तक रद्द करने की सिफारिश कर डाली। लेकिन कलाम साहब ने अपने मुंह से ऊफ तक नहीं किया। यह घटना 24 अप्रैल की थी, जबकि इसका खुलासा जुलाई में हुआ और वो किसी तीसरे ने इस पर प्रकाश डाला कलाम साहब ने नहीं। अफसोस की बात है कि हमारे नेता पूर्व राष्ट्रपति तक से प्रेरण नहीं ले सके। मीरा शंकर की जगह अगर अब्दुल कलाम होते तो गुस्से में ये नहीं बोलते कि अब यहां नहीं आएंगे। निश्चित तौर पर हर व्यक्ति एक जैसा नहीं हो सकता, लेकिन किसी दूसरे के अच्छे गुणों को तो ग्रहण किया ही जा सकता है। मीरा शंकर के मामले में जो गलत है केवल उसी पर विरोध जताया जाना चाहिए। सुरक्षा जांच से गुजरने में कोई बडा व्यक्ति छोटा नहीं हो जाता। सच कहा जाए तो हम भारतीयों को हर छोटी बात को खींचकर बड़ा करने की बीमारी है, फिर चाहे वही उच्च पदों पर आसीन व्यक्ति हो या आम आदमी। जब तक हम जरूरी और गैर जरूरी में फर्क करना नहीं सीख लेते इस तरह की घटनाओं पर हो-हल्ला करते रहेंगे।
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Tuesday, December 14, 2010
जांच क्या कि हंगामा हो गया
नीजर नैयर
अमेरिकी हवाई अड्डे पर भारतीय राजदूत मीरा शंकर की तलाशी क्या हुई दिल्ली में बैठे राजनीतिक दलों को हो-हल्ला मचाने का मौका मिल गया। भाजपा ने तो लगे हाथ रैली भी निकाल डाली। सियासी पार्टियां इस मुद्दे पर भी सरकार को घेर रही हैं, जैसे सरकार ने खुद अमेरिकी अधिकारियों से कहा हो कि मीरा की तलाशी ली जाए। हां, वो इस बात पर जरूर सरकार को घेर सकती हैं कि केंद्र सरकार अमेरिका से किस लहजे में नाराजगी व्यक्त करती है। वैसे प्रकरण के सामने आने के तुरंत बाद विदेशमंत्रालय ने थोड़ी बहुत गर्जना जरूर की, और इसका त्वरित असर भी देखने को मिला। अमेरिकी विदेशमंत्री हिलेरी क्लिंटन ने स्वयं खेद व्यक्त करते हुए भरोसा दिलाया कि इस घटना की पुर्नवृत्ति नहीं होगी। हालांकि, अमेरिका ने ये भी साफ किया कि जो कुछ भी हुआ वो कानून के मुताबिक हुआ। अमेरिका के ट्रांसपोर्ट सिक्यूरिटी असोसिएशन (टीएसए)के तहत राजनयिकों को तलाशी में छूट नहीं दी जाती। दरअसल मीरा शंकर ने भारतीय पारंपरिक परिधान यानी साड़ी पहनी हुई थी, और टीएसए के मुताबिक तलाशी के कारणों में ढेर सारे कपड़े पहनना भी शामिल है। अब ऐसे देखा जाए तो साड़ी और बुर्के में फर्क केवल इतना ही है कि एक में चेहरा दिखता है और दूसरे में नहीं। मीरा शंकर के साथ जो गलत हुआ वो ये कि राजनयिक जैसे ओदे पर होने के बाद भी पारदर्शी बाक्स में ले जाकर उनकी हाथों से तलाशी ली गई। जबकि एयरपोर्ट अधिकारियों को दिए दिशा-निर्देशों में यह साफ किया गया है कि यदि कोई यात्री सबके सामने तलाशी नहीं देना चाहता तो उसकी जांच गोपनीय तौर पर होनी चाहिए। मीरा कुमार के साथ दूसरे कुछ अधिकारी भी, लेकिन उन्हें भी अनसुना कर दिया गया। वैसे ये कोई पहला मौका नहीं, जब अमेरिका में उच्च दर्जा प्राप्त भारतीयों को इस तरह की जांच से गुजरना पड़ा हो। पिछले साल बॉलिवुड स्टार शाहरुख खान को न्यूयार्क के लिबर्टी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर सिर्फ इसलिए रोककर पूछताछ की गई, क्योंकि उनके नाम के आगे खान जुड़ा था। इसी साल नागरिक उड्डयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल से शिकागो के ओ हेयर अड्डे पर पूछताछ की गई।
इस पूछताछ की वजह इतनी थी उनका नाम और जन्मतिथि उस शख्स से मेल खा रही थी, जो अमेरिका की वॉच लिस्ट में था। इससे पीछे चलें तो राजग सरकार में रक्षामंत्री रहे जार्ज फर्नांडीस को भी अमेरिकी एयरपोर्ट पर तलाशी से गुजरना पड़ा था, और जैसा मुझे याद है उनके तो कपड़े उतरवाकर तलाशी ली गई थी। वो घटना निश्चित तौर पर अप्रत्याशित और चौंकाने वाली थी, एक रक्षामंत्री के साथ इस तरह का व्यावहार करना कहीं से उचित नहीं माना जा सकता। लेकिन इसके बाद की जो घटनाएं हैं, उन पर इतना हो-हल्ला मचाना बिल्कुल ही जायज नहीं लगता। शाहरुख खान को बेशक भारत में स्पेशल ट्रीटमेंट दिया जाता हो, उन्हेंसुरक्षा जांच जैसे झंझटों से मुक्त रखा जाता हो मगर दूसरे मुल्कों से तो ये अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वो भी वैसे ट्रीटमेंट दें। बॉलीवुड स्टार के लिए अमेरिका अपने सुरक्षा नियमों में तो बदलाव नहीं कर सकता। 911 के बाद अमेरिकी बहुत यादा सतर्क हो गए हैं, इसमें कोई दोराय नहीं कि इस सतर्कता से अमेरिकी आवाम को भी कई बार परेशानी का सामना करना पड़ता है। लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि उस एक आतंकी हमले के बाद दहशतगर्द अमेरिका की तरफ आंख उठाने तक ही हिमाकत नहीं कर पाए हैं। अमेरिका पर हमला करने वाले अल कायदा के आतंकवादी थे, जो मूलरूप से मुसलमान थे। इसलिए अगर किसी नाम के आगे खान जुड़ा देखकर वो अति सतर्क हो जाते हैं तो इस पर बवाल मचाने वाली क्या बात है। शाहरुख खान यदि इस घटना को सामान्य तौर पर लेते तो इतना हंगामा मचता ही नहीं। इसी तरह प्रफुल्ल पटेल की बात करें तो, वो गलतफहमी का शिकार हुए। अगर उनका नाम और जन्मतिथी किसी वांछित अपराधी से मेल खाता है और जांच अधिकारियों ने उनसे कुछ सवालात पूछ लिए तो मुझे नहीं लगता कि इसमें अपमान जैसी कोई बात है। उल्टा हमें इससे सीख लेना चाहिए कि अमेरिकी अधिकारी सुरक्षा के मुद्दे पर रुतबे के दबाव में नहीं आते। अब सवाल करने वाले पूछ सकते हैं कि क्या अमेरिकी नेताओं के साथ भी होता होगा, इसका जवाब काफी हद तक हां में है। अमेरिका में जिन लोगों को सुरक्षा जांच में छूट मिली है उनकी फेहरिस्त हमारी तरह इतनी लंबी नहीं है। हमारे यहां तो एक अदना सा नेता भी रुबाब झाड़ने से पीछे नहीं हटता।
दूसरी बात अपने देश के नेताओं को सब पहचानते हैं, अगर अमेरिकी अधिकारी अपने अफसरान को कुछ रियायत देते भी हैं तो उसे गलत नहीं कहा जा सकता। कायदे में होना यही चाहिए कि जब आम आदमी को सुरक्षा के झंझावत से गुजरना पड़ता है तो वीवीआई भी इंसान ही हैं। और वैसे भी सुरक्षा नियम सबको सुरक्षित रखने के लिए ही बनाए जाते हैं। भारतीयों में समस्या ये है कि ऊंचे पद पर पहुंचने के साथ ही उनका अहम ऊंचा उठने लगता है। भारत में उन्हें सुविधाएं मिलती हैं उनके वो आदी हो जाते हैं और जब उनसे आम इंसान की तरह व्यवहार किया जाता है तो उनके अहम को चोट लग जाती है। बड़क्पपन जैसी कोई चीज हमारे अंदर बची ही नहीं है, हमारे नेताओं को अभिनेताओं को कम से कम इस मामले में तो अमेरिकियों का कायल होना चाहिए कि उनकी प्राथमिकता में राष्ट्र सुरक्षा सबसे पहले है। इस मामले में पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम का कोई जवाब नहीं, गत साल इंदिरा गांधी एयरपोर्ट पर अमेरिका की काँटिनेंटल एयरलाइंस के अधिकारियों ने कलाम साहब को जहाज में सवार होने से पहले पूरी सुरक्षा जांच से गुजारा। जबकि प्रोटोकाल के तहत भारत में उन्हें इस तरह की जांच से छूट मिली हुई है। इसके पीछे एयरलाइंस का तर्क था कि उन्हें आदेश हैं कि किसी को भी बिना तलाशी के सवार न होने दिया जाए।
इस तलाशी को लेकर एयरपोर्ट से संसद तक बहुत बवाल मचा, कई सांसदों ने तो उस एयरलाइंस का लाइसेंस तक रद्द करने की सिफारिश कर डाली। लेकिन कलाम साहब ने अपने मुंह से ऊफ तक नहीं किया। यह घटना 24 अप्रैल की थी, जबकि इसका खुलासा जुलाई में हुआ और वो किसी तीसरे ने इस पर प्रकाश डाला कलाम साहब ने नहीं। अफसोस की बात है कि हमारे नेता पूर्व राष्ट्रपति तक से प्रेरण नहीं ले सके। मीरा शंकर की जगह अगर अब्दुल कलाम होते तो गुस्से में ये नहीं बोलते कि अब यहां नहीं आएंगे। निश्चित तौर पर हर व्यक्ति एक जैसा नहीं हो सकता, लेकिन किसी दूसरे के अच्छे गुणों को तो ग्रहण किया ही जा सकता है। मीरा शंकर के मामले में जो गलत है केवल उसी पर विरोध जताया जाना चाहिए। सुरक्षा जांच से गुजरने में कोई बडा व्यक्ति छोटा नहीं हो जाता। सच कहा जाए तो हम भारतीयों को हर छोटी बात को खींचकर बड़ा करने की बीमारी है, फिर चाहे वही उच्च पदों पर आसीन व्यक्ति हो या आम आदमी। जब तक हम जरूरी और गैर जरूरी में फर्क करना नहीं सीख लेते इस तरह की घटनाओं पर हो-हल्ला करते रहेंगे।
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अमेरिकी हवाई अड्डे पर भारतीय राजदूत मीरा शंकर की तलाशी क्या हुई दिल्ली में बैठे राजनीतिक दलों को हो-हल्ला मचाने का मौका मिल गया। भाजपा ने तो लगे हाथ रैली भी निकाल डाली। सियासी पार्टियां इस मुद्दे पर भी सरकार को घेर रही हैं, जैसे सरकार ने खुद अमेरिकी अधिकारियों से कहा हो कि मीरा की तलाशी ली जाए। हां, वो इस बात पर जरूर सरकार को घेर सकती हैं कि केंद्र सरकार अमेरिका से किस लहजे में नाराजगी व्यक्त करती है। वैसे प्रकरण के सामने आने के तुरंत बाद विदेशमंत्रालय ने थोड़ी बहुत गर्जना जरूर की, और इसका त्वरित असर भी देखने को मिला। अमेरिकी विदेशमंत्री हिलेरी क्लिंटन ने स्वयं खेद व्यक्त करते हुए भरोसा दिलाया कि इस घटना की पुर्नवृत्ति नहीं होगी। हालांकि, अमेरिका ने ये भी साफ किया कि जो कुछ भी हुआ वो कानून के मुताबिक हुआ। अमेरिका के ट्रांसपोर्ट सिक्यूरिटी असोसिएशन (टीएसए)के तहत राजनयिकों को तलाशी में छूट नहीं दी जाती। दरअसल मीरा शंकर ने भारतीय पारंपरिक परिधान यानी साड़ी पहनी हुई थी, और टीएसए के मुताबिक तलाशी के कारणों में ढेर सारे कपड़े पहनना भी शामिल है। अब ऐसे देखा जाए तो साड़ी और बुर्के में फर्क केवल इतना ही है कि एक में चेहरा दिखता है और दूसरे में नहीं। मीरा शंकर के साथ जो गलत हुआ वो ये कि राजनयिक जैसे ओदे पर होने के बाद भी पारदर्शी बाक्स में ले जाकर उनकी हाथों से तलाशी ली गई। जबकि एयरपोर्ट अधिकारियों को दिए दिशा-निर्देशों में यह साफ किया गया है कि यदि कोई यात्री सबके सामने तलाशी नहीं देना चाहता तो उसकी जांच गोपनीय तौर पर होनी चाहिए। मीरा कुमार के साथ दूसरे कुछ अधिकारी भी, लेकिन उन्हें भी अनसुना कर दिया गया। वैसे ये कोई पहला मौका नहीं, जब अमेरिका में उच्च दर्जा प्राप्त भारतीयों को इस तरह की जांच से गुजरना पड़ा हो। पिछले साल बॉलिवुड स्टार शाहरुख खान को न्यूयार्क के लिबर्टी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर सिर्फ इसलिए रोककर पूछताछ की गई, क्योंकि उनके नाम के आगे खान जुड़ा था। इसी साल नागरिक उड्डयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल से शिकागो के ओ हेयर अड्डे पर पूछताछ की गई।
इस पूछताछ की वजह इतनी थी उनका नाम और जन्मतिथि उस शख्स से मेल खा रही थी, जो अमेरिका की वॉच लिस्ट में था। इससे पीछे चलें तो राजग सरकार में रक्षामंत्री रहे जार्ज फर्नांडीस को भी अमेरिकी एयरपोर्ट पर तलाशी से गुजरना पड़ा था, और जैसा मुझे याद है उनके तो कपड़े उतरवाकर तलाशी ली गई थी। वो घटना निश्चित तौर पर अप्रत्याशित और चौंकाने वाली थी, एक रक्षामंत्री के साथ इस तरह का व्यावहार करना कहीं से उचित नहीं माना जा सकता। लेकिन इसके बाद की जो घटनाएं हैं, उन पर इतना हो-हल्ला मचाना बिल्कुल ही जायज नहीं लगता। शाहरुख खान को बेशक भारत में स्पेशल ट्रीटमेंट दिया जाता हो, उन्हेंसुरक्षा जांच जैसे झंझटों से मुक्त रखा जाता हो मगर दूसरे मुल्कों से तो ये अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वो भी वैसे ट्रीटमेंट दें। बॉलीवुड स्टार के लिए अमेरिका अपने सुरक्षा नियमों में तो बदलाव नहीं कर सकता। 911 के बाद अमेरिकी बहुत यादा सतर्क हो गए हैं, इसमें कोई दोराय नहीं कि इस सतर्कता से अमेरिकी आवाम को भी कई बार परेशानी का सामना करना पड़ता है। लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि उस एक आतंकी हमले के बाद दहशतगर्द अमेरिका की तरफ आंख उठाने तक ही हिमाकत नहीं कर पाए हैं। अमेरिका पर हमला करने वाले अल कायदा के आतंकवादी थे, जो मूलरूप से मुसलमान थे। इसलिए अगर किसी नाम के आगे खान जुड़ा देखकर वो अति सतर्क हो जाते हैं तो इस पर बवाल मचाने वाली क्या बात है। शाहरुख खान यदि इस घटना को सामान्य तौर पर लेते तो इतना हंगामा मचता ही नहीं। इसी तरह प्रफुल्ल पटेल की बात करें तो, वो गलतफहमी का शिकार हुए। अगर उनका नाम और जन्मतिथी किसी वांछित अपराधी से मेल खाता है और जांच अधिकारियों ने उनसे कुछ सवालात पूछ लिए तो मुझे नहीं लगता कि इसमें अपमान जैसी कोई बात है। उल्टा हमें इससे सीख लेना चाहिए कि अमेरिकी अधिकारी सुरक्षा के मुद्दे पर रुतबे के दबाव में नहीं आते। अब सवाल करने वाले पूछ सकते हैं कि क्या अमेरिकी नेताओं के साथ भी होता होगा, इसका जवाब काफी हद तक हां में है। अमेरिका में जिन लोगों को सुरक्षा जांच में छूट मिली है उनकी फेहरिस्त हमारी तरह इतनी लंबी नहीं है। हमारे यहां तो एक अदना सा नेता भी रुबाब झाड़ने से पीछे नहीं हटता।
दूसरी बात अपने देश के नेताओं को सब पहचानते हैं, अगर अमेरिकी अधिकारी अपने अफसरान को कुछ रियायत देते भी हैं तो उसे गलत नहीं कहा जा सकता। कायदे में होना यही चाहिए कि जब आम आदमी को सुरक्षा के झंझावत से गुजरना पड़ता है तो वीवीआई भी इंसान ही हैं। और वैसे भी सुरक्षा नियम सबको सुरक्षित रखने के लिए ही बनाए जाते हैं। भारतीयों में समस्या ये है कि ऊंचे पद पर पहुंचने के साथ ही उनका अहम ऊंचा उठने लगता है। भारत में उन्हें सुविधाएं मिलती हैं उनके वो आदी हो जाते हैं और जब उनसे आम इंसान की तरह व्यवहार किया जाता है तो उनके अहम को चोट लग जाती है। बड़क्पपन जैसी कोई चीज हमारे अंदर बची ही नहीं है, हमारे नेताओं को अभिनेताओं को कम से कम इस मामले में तो अमेरिकियों का कायल होना चाहिए कि उनकी प्राथमिकता में राष्ट्र सुरक्षा सबसे पहले है। इस मामले में पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम का कोई जवाब नहीं, गत साल इंदिरा गांधी एयरपोर्ट पर अमेरिका की काँटिनेंटल एयरलाइंस के अधिकारियों ने कलाम साहब को जहाज में सवार होने से पहले पूरी सुरक्षा जांच से गुजारा। जबकि प्रोटोकाल के तहत भारत में उन्हें इस तरह की जांच से छूट मिली हुई है। इसके पीछे एयरलाइंस का तर्क था कि उन्हें आदेश हैं कि किसी को भी बिना तलाशी के सवार न होने दिया जाए।
इस तलाशी को लेकर एयरपोर्ट से संसद तक बहुत बवाल मचा, कई सांसदों ने तो उस एयरलाइंस का लाइसेंस तक रद्द करने की सिफारिश कर डाली। लेकिन कलाम साहब ने अपने मुंह से ऊफ तक नहीं किया। यह घटना 24 अप्रैल की थी, जबकि इसका खुलासा जुलाई में हुआ और वो किसी तीसरे ने इस पर प्रकाश डाला कलाम साहब ने नहीं। अफसोस की बात है कि हमारे नेता पूर्व राष्ट्रपति तक से प्रेरण नहीं ले सके। मीरा शंकर की जगह अगर अब्दुल कलाम होते तो गुस्से में ये नहीं बोलते कि अब यहां नहीं आएंगे। निश्चित तौर पर हर व्यक्ति एक जैसा नहीं हो सकता, लेकिन किसी दूसरे के अच्छे गुणों को तो ग्रहण किया ही जा सकता है। मीरा शंकर के मामले में जो गलत है केवल उसी पर विरोध जताया जाना चाहिए। सुरक्षा जांच से गुजरने में कोई बडा व्यक्ति छोटा नहीं हो जाता। सच कहा जाए तो हम भारतीयों को हर छोटी बात को खींचकर बड़ा करने की बीमारी है, फिर चाहे वही उच्च पदों पर आसीन व्यक्ति हो या आम आदमी। जब तक हम जरूरी और गैर जरूरी में फर्क करना नहीं सीख लेते इस तरह की घटनाओं पर हो-हल्ला करते रहेंगे।
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