Tuesday, May 11, 2010

बेगानी शादी में अब्दुल्ला

दीवाना
नीरज नैयर
बीते दिनों मीडिया ने किसी खबर पर ध्यान केंद्रित किया तो वो थी सानिया-शोएब की शादी। पाकिस्तानी क्रिकेटर और भारतीय टेनिस सनसनी एक पखवाड़े तक मीडिया में सुखियां बटोरते रहे। सीमा के इस पार और उस पार दोनों तरफ सानिया और शोएब के बीच तीसरी कड़ी के रूप में सामने आईं आयशा के आरोपों का सच खंगालने में मीडिया ने कोई कसर नहीं छोड़ी। निकाहनामे की प्रति से लेकर उस पर अंकित दस्तखतों की बारीकी से जांच की गई, मुल्ला-मौलवियों के बयान लिए गए, यह बताने की कोशिश की गई कि कौन सही है और कौन गलत। कभी आयशा के आरोपों को उनके वजन के अनुरूप वजनी बताया गया तो कभी शोएब के बयानों में सच्चाई का अहसास कराया गया। खबरिया चैनलों ने तो इस खबर के एक-एक एंगेल को इतनी बार दिखाया कि इस लव कम मैरिज ट्रायंगल के हर पात्र का नाम लोगों को मुंह जुबानी याद हो गया। आयशा के मां-बाप से लेकर शोएब के जीजा तक को लोग ऐसे पहचानने लगे जैसे ये सब किसी सास-बहू टाइप हाईप्रोफाइल सीरियल के हाईप्रोफाइल किरदार हों। हर चैनल ने खुद को नंबर वन साबित करने की कवायद में पत्रकारों को मच्छरों की माफिक आयशा और सानिया के घरों के इर्द-गिर्द छोड़ दिया। दोनों परिवारों की हर हरकत पर निगाह रखी गई,

सानिया की बालकनी में लगे कैमरे की कहानी कैमरे की जुबानी बताने के लिए एक-दो घंटे के स्पेशल प्रोग्राम तक तैयार किए गए। रात-रात भर उल्लू की तरह जागकर मीडियावाले शोएब के सानिया के घर आने की राह तकते रहे। शोएब-आयशा के तलाक के बाद जब मामला सुलझ गया तो सानिया के होने वाले शौहर द्वारा बोले गए झूठों को एक-एक करके ऐसे दिखाया गया मानो इससे बड़ी कोई खबर ही न हो। और तो और मीडियावालों ने ये तक खुलासा कर दिया कि सुलह-समझौते के लिए शोएब को 15 करोड़ ढीले करने पड़े हैं। शादी में कौन आएगा, कौन नहीं, खाने का मीनू क्या होगा आदि..आदि पर भी विस्तार से चर्चा की गई। अब जब निकाह हो चुका है तो उसके जल्दी होने की वजह तलाशी जा रही हैं, योतिषियों से सानिया-शोएब के भविष्य का आकलन करवाया जा रहा है। उनके हनीमून के कयास लगाए जा रहे हैं। वैसे ये अकेले सानिया और शोएब की शादी की ही बात नहीं है। मीडिया हर हाईप्रोफाइल शादी में बिन बुलाए मेहमान की तरह शिरकत करने की आदत सी हो गई है, फिर चाहे इसके लिए लात-घूंसे ही क्यों न खाने पड़े। ऐश-अभिषेक, हर्ले-नायर की शादी के वक्त भी कुछ ऐसा ही माहौल तैयार किया गया था। देखा जाए तो नेता और पत्रकार बेशक अलग-अलग पेशे से जुड़े हों मगर दोनों में दो बातों बिल्कुल समान हैं। पहली सहनशीलता और दूसरी जल्द भूलने की आदत। जिस तरह नेता दुत्कारे जाने के बाद भी चुनाव के वक्त हाथ जोड़कर वोट मांगने पहुंच जाता है,


उसी तरह भी लात-घूसें खाने के बाद कैमरा और माइक लेकर फिर खड़ा हो जाता है। ऐश-अभिषेक की शादी के वक्त फोटो खींचने के चक्कर में कोई अस्पताल पहुंचा तो किसी को दिन में ही तारे नजर आ गए। तारे गिनते-गिनते जब लगा कि हमारी बेइाती हो गई है तो हल्ला शुरू कर दिया। लेकिन जैसे ही अमिताभ ने साफ कि मीडियाकर्मियों पर चली लात हमारी नहीं अमर सिंह की थी, फिर उधेड़बुन चालू हो गई कि ऐश ने जया को पहली बार सासू मां कहा होगा या कुछ और। अभि ने ऐश को झुमका दिया होगा या हीरों का हार आदि.. आदि। प्रतीक्षा और जलासा में जश् खत्म होने के लंब समय तक टीवी चैनलों पर यह दौर जारी रहा। कहीं उनके हनीमून को लेकर कयास लगाए गए तो कहीं सास-बहु के रिश्ते को लेकर। मौजूदा वक्त में भी बिग-बी के परिवार से जुड़ी हर खबर को स्पेशल ऐपीसोड़ बनाकर दिखाया जाता है। मीडिया पर जिस तरह का नशा सवार है, उसमें कोई तााुब नहीं होगा कि आने वाले दिनों में चैनल वाले इस बात भी मंथन शुरू कर दें कि ऐश-अभि के बच्चे का नाम क्या होगा। अगर नाम ये होगा तो शुभ होगा या अशुभ होगा। अगर नाम वो होगा तो ऐसा हो गया या वैसा होगा। इसके लिए नामी गिरामी योतिषियों की राय ली जाएगी और एक न झिलने वाले कार्यक्रम को चमका-दमकाकर हफ्ते भर का कोटा पूरा कर लिया जाएगा। जूनियर बच्चन की शादी की खबरों के सामने आने के साथ ही जैसे ये हर चैनल का धर्म बन गया था कि एक घंटा बच्चन परिवार को दिखाया ही जाएगा। अमिताभ ने भले ही कुंडलियां न मिलवाई हों मगर मीडिया ने कुंडलियां भी मिलवाईं,


गुण-दोष भी बताए और उपाए भी निकालकर भी सामने रख दिए। विशेषज्ञों को बिठाकर आकलन भी कर डाला कि ऐश का मंगल कहीं अमंगल न कर दे। शादी में कौन आएगा, कौन नहीं, कार्ड पर लिखने वाला पैन देशी है या विदेशी। लड्डू बूंदी के होंगे या बेसन के, दूध में चीनी कम होगी या यादा। ऐसी हर छोटी-छोटी बातों को मीडिया ने खूब तड़का लगाकर पेश किया। चैनल वालों ने बच्चन भक्ति में अपना आध समय भेंट किया तो अखबार वालों ने आधा पेपर। मगर अंत में दोनों को क्या मिला चंद लातें और घूंसे। बावजूद किसी के चेहरे पर कोई शिकन नहीं दिखी। गाहे-बगाहे अगर जहन में कभी लात का ख्याल आ भी जाता है तो ये सोचकर तसल्ली कर ली जाती है कि वो लात बिग-बी की नहीं अमर सिंह की थी। हां, नायर-हर्ले के मामले में कभी-कभी टीस जरूर उठ जाती है। ऐश-अभी, सानिया शोएब की शादी की तरह लिज हर्ले और अरुण नायर की शादी को भी ने दिल खोलकर कवरेज दिया। लिज के लहंगे से लेकर नायर की शेरवानी तक पर कितना खर्च किया गया, सब पर मीडिया की नजर थी। नायर को जिस तरह से तवाो दी जा रही थी, उसे देखकर लग रहा था जैसे मुल्क की सल्तनत के किसी राजकुमार की वतन वापसी हुई है। और वो किसी राजकुमारी से शादी रचाने जा रहा है। पर हकीकत में न तो नायर ने राजकुमार जैसे कुछ काम किए और न ही हर्ले राजकुमारी के फ्रेम में फिट बैठती थीं। मीडिया वाले शादी में घराती भी बने और बराती भी,


डोली भी सजाई और स्टेज भी। शादी के वक्त किले के बाहर पहरेदार की भूमिका भी निभाई तो विदाई के वक्त आंसू भी बहाए। मगर अंत यहां भी कुछ फिल्मी अंदाज में ही हुआ। चंद लात और घूंसों से नायर दंपत्ति ने बिन बुलाए मेहमानों का स्वागत किया बैग में पहले से तैयार तख्तियां काम आ गईं। जिन समाचार चैनलों के पत्रकार पिट रहे थे वो बार-बार इस नजारे को दिखाए जा रहे थे और जिन समाचार पत्रों के पत्रकार ठुक रहे थे वो कल के लिए मैटर जुटाए जा रहे थे, इस आस में कि हर्ले-नायर के सॉरी कहते ही गिले-शिकवे दूर कर दिए जाएंग। जैसे बच्चन परिवार के साथ कर दिए गए थे। मगर अफसोस कि ऐसा कुछ नहीं हुआ। नायर दंपत्ति ने उड़ान भरी और मीडियावालों को मुंह चिढ़ाते हुए निकल लिए। ऐसे ही करिश्मा कपूर की शादी के वक्त भी मीडियावालों को मुंह की खानी पड़ी थी। गनीमत रही कि सानिया-शोएब की शादी के वक्त ऐक्शन देखने को नहीं मिला। इसके पीछे जरूर दोनों परिवारों की नकरात्मक छवि रही। अगर प्यार में आयशा नाम का टि्वस्ट नहीं आता तो निश्वित ही मीडिया वाले लात-घूंसे खा रहे होते और प्रोग्राम दिखा रहे होते। बेगानी शादी में अब्दुल्ला की तरह दीवानगी दिखाने की मीडिया की आदत सी हो गई है और ये आदत हमें कभी कई और रोमांच महसूस करवाएगी।