नीरज नैयर
ओलंपिक खेलों में भारत का लचर प्रदर्शन और पदक तालिका में सबसे नीचे रहने का दुख हर भारतवासी को होगा। अभिनव बिंद्रा, विजेंद्र और सुशील कुमार ने जो पदक जीते हैं वो सालों से सूखी जमीन पर पानी की चंद बूंदों की माफिक हैं। जो जमीन को कुछ देर के लिए गीला तो कर सकती हैं मगर उसकी प्यास नहीं बुझा सकतीं। ओलंपिक में भारत आबादी और क्षेत्रफल के लिहाज से अपने से कई गुना छोटे देशों से भी बहुत पीछे है। घरेलू मैदान पर बेहतरीन प्रदर्शन करने वाले हमारे खिलाड़ी विदेशजमीं पर क्यों सहम जाते हैं, इसका जवाब हमें आजतक नहीं मिल सका है। जिन खिलाड़ियों से सबसे यादा उम्मीदें होती हैं, वही कुछ दूर चलने के बाद हाफंते नजर आते हैं। शायद यही वजह है कि इस तरह के खेलों को न तो मीडिया खास तवाो देता है और न ही लोग उनके परिणाम जानने के लिए उत्साहित दिखाई देते हैं। चंद रोज पहले अजलान शाह कप की संयुक्त विजेता बनकर लौटी भारतीय हॉकी टीम के स्वागत के लिए खुद हॉकी से जुड़े अधिकारियों का न पहुंचना इस बात का सुबूत है कि भारत में ऐसे खेल प्राथमिकता सूची में किस पायदान पर आते हैं।
णहॉकी भारत का राष्ट्रीय खेल है, बावजूद इसके वो बदहाली के दौर से गुजर रहा है तो इसका एक बड़ा कारण खिलाड़ियों का अच्छा परफार्म न कर पाना भी है। हॉकी का विश्व कप इस बार भारत में हुआ, स्टेडियम में भीड़ जुटाने के तमाम प्रयास किए गए जो काफी हद तक कारगर भी हुए लेकिन उसका नतीजा क्या निकला। भारतीय टीम सेमी फाइनल तक में नहीं पहुंच पाई। हॉकी को फिर दिल देने के लिए हॉकी के स्तर में सुधार की जरूरत है। और जब तक ये नहीं होता, हालात बदलने वाले नहीं हैं। हॉकी के अलावा दूसरे खेलों में बेडमिंटन और टेनिस में भारत की स्थिति थोड़ी बहुत ठीक है, लेकिन इतनी भी नहीं कि ओलंपिक में मैडल दिलवा सके। इसलिए लंबे समय से ओलंपिक जैसे आयोजनों में क्रिकेट की कमी खलती आई है। लोग मानते हैं कि बुरे दौर में भी टीम इंडिया गोल्ड मैडल जीतने का माद्दा रखती है। 2020 में होने वाले ओलंपिक खेलों में यदि क्रिकेट खेला गया तो सबसे यादा भारतीय अन्य खेलों की अपेक्षा क्रिकेट पर दांव लगाना पसंद करेंगे। वैसे अंतरराष्ट्रीय ओलिंपिक सीमति (आईओसी) ने आईसीसी को मान्यता देकर ओलंपिक में क्रिकेट का रास्ता साफ कर दिया है। लेकिन आईसीसी के अलावा भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) का भी ओलंपिक में टीम भेजने के लिए राजी होना जरूरी है। जिस तरह का अड़ियल रुख बोर्ड ने एशियन गेम्स को लेकर अपना रखा है अगर वैसा ही उसने ओलंपिक के वक्त अपनाया तो क्रिकेटरों को ओलंपिक में खेलते देखने का सपना सपना बनकर ही रह जाएगा। 12 से 27 नवंबर तक चीन में होने वाले एशियाई खेलों के लिए टीम भेजने से बीसीसीआई ने दो टूक इंकार कर दिया है। इसके पीछे उसने इंटरनेशनल कमिटमेंट का हवाला दिया है। उसका तर्क है कि जिस वक्त में एशियन गेम्स होने हैं, उसी वक्त न्यूजीलैंड को भारत आना है। बोर्ड ने महिला टीम को भी नहीं भेजने का फैसला लिया है।
वैसे ये कोई पहला मौका नहीं है जब बीसीसीआई ने देश से यादा अपने व्यक्तिगत हितों को महत्व दिया हो, इससे पहले 1998 क्वालालंपुर गेम्स में भी बोर्ड ने दूसरे दर्ज की टीम भेजी थी जबकि मुख्य टीम को टोरंटों में सीरीज खेलने भेज दिया था। दिल्ली कॉमनवेल्थ खेलों के आयोजक भी ट्वेंटी-20 क्रिकेट को शामिल करना चाहते थे लेकिन बीसीसीआई ने ऐसा होने नहीं दिया। यह बेहद दुरर््भाग्यपूण हैं कि बोर्ड के लिए देश के मान-सम्मान से यादा आर्थिक सरोकार मायने रखते हैं। न्यूजीलैंड के साथ मैच खेलने से यादा जरूरी था कि क्रिकेटर एशियाई खेलों में देश का प्रतिनिधित्व करते। जो बीसीसीआई अति व्यस्त कार्यक्रम के बीच में भी आईपीएल का आयोजन कर सकता है, उसके लिए एशियन गेम्स के लिए महज 15 दिन जुटाना कोई बड़ी बात नहीं थी। पिछली दो बार से आईपीएल ट्वेंटी-20 वर्ल्ड कप से ठीक पहले हो रहा है, और इसबीच टीम इंडिया कई अन्य टूर्नामेंट भी खेल लेती है। लेकिन बोर्ड को इसमें कभी कोई परेशानी महसूस नहीं हुई। क्योंकि इन टूर्नामेंटों से उसकी आर्थिक सेहत अच्छी होती है। आईपीएल से उसे करोड़ों-अरबों का मुनाफा होता है, जबकि एशियन गेम्स जैसे आयोजनों में टीम भेजकर उसे सम्मान के अलावा कुछ भी हासिल नहीं होने वाला। बोर्ड भले ही इंटरनेशल कमिटमेंट का बहाना बनाए मगर सच सही है कि उसे न्यूजीलैंड सीरिज से होने वाली आय नजर आ रही है। उसे पता है कि टेलीकास्ट राइट्स और प्रायोजकों के जरिए जितनी कमाई उसे न्यूजीलैंड के साथ मैच खेलकर हो सकती है, उतनी एशियाई खेलों में टीम भेजकर नहीं।
णये बात सही है कि आर्थिक हितों का ध्यान हर कोई रखता है, और इसमें कोई बुराई भी नहीं है लेकिन जब बात देश की हो तो मुनाफा मायने नहीं रखना चाहिए। वैसे भी बोर्ड आजतक चैरिटेबल संस्था की आड़ में अरबों का मुनाफा कमाता आया है। दुनिया के सबसे अमीर बोर्ड का दर्जा पाने वाले बीसीसीआई का सामाजिक दायित्व से भी दूर-दूर का नाता नहीं है। भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड का सालाना कारोबार करोड़ों रुपए का है, महज टीवी करार से ही उसने करोड़ों-अरबों की कमाई कर लेता है। अभी हाल ही में संपन्न हुई इंडियन प्रीमियर लीग के दौरान भी उसने जमकर धन कूटा। मगर आज तक शायद ही कभी कोई ऐसी खबर सुनने में आई हो जब बोर्ड ने खुद आगे बढ़कर समाज के लिए कुछ किया हो। सिवाए बरसो-बरस आयोजित होने वाले एक-दो चैरिटी मैचों के। अक्सर सुनने में आता है कि फंला खिलाड़ी ने आर्थिक तंगी के चलते मौत को गले लगा लिया, इसका एक उदाहरण उत्तर प्रदेश का है, जहां कुछ वक्त पहले आर्थिक बदहाली ने एक होनहार रणजी खिलाड़ी को जान देने पर मजबूर कर दिया। क्या बीसीसीआई का ऐसे खिलाड़ियों के प्रति कोई दायित्व नहीं। बोर्ड कतई चैरिटी न करे मगर इतना तो कर सकता है कि क्रिकेट मैच के टिकट ब्रिकी से होने वाली आय में से एक रुपया ऐसे खिलाड़ियों के कल्याण में लगा दे। देश के लिए कुछ करना तो दूर की बात है अपनी खिलाड़ी बिरादरी बोर्ड कुछ करने को तैयार दिखाई नहीं देता। इतना बड़ा कारोबार और चमक-धमक महज मनोरंजन तक ही सीमित है।
आईपीएल के अलावा बोर्ड पिछले दिनों इंरट कॉर्पोरेट टूर्नामेंट भी शुरू करने का फैसला कर चुका है, भारी इनामी राशि वाला यह टूर्नामेंट 50-50 और 20-20 दोनों फॉर्मेट में खेला जाएगा। विजेता टीम को एक करोड़, उपविजेता को 50 लाख और सेमीफाइनल में हारने वाली टीमों को 25-25 लाख रुपए इनाम स्वरूप दिए जाएंगे। इन सबके लिए बोर्ड के पास भरपूर वक्त है, लेकिन एशियन गेम्स में टीम भेजने के लिए नहीं। आईओए के अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी अगर बीसीसीआई को पैसे के पीछे भागने वाला कह रहे हैं तो इसमें कुछ गलत नहीं। बीसीसीआई आज पूरी तरह से कॉमर्शियल हो चुका है, और उसे जहां मुनाफा नजर आएगा वो वहीं टीम भेजेगा। यदि एशियाई खेलों से उसे मोटी कमाई हो रही होती तो इंटरनेशल कमिटमेंट के बहाने बनते ही नहीं। बोर्ड की इस बहानेबाजी से ओलंपिक में टीम इंडिया के खेलने के सपनों पर बादल मंडराने लगे हैं और उनके छटने की संभावना बहुत क्षीण नजर आ रही है।