Friday, July 1, 2011
एक चोर तो दूसरा शरीफ कैसे
नीरज नैयर
चोर को चोर कहने में भले ही चोर को बुरा लगे मगर इसमें गलत कुछ भी नहीं। लेकिन यदि एक चोर को चोर कहा जाए और दूसरे पर उंगली भी न उठाई जाए तो पहले चोर को चोट पहुंचना लाजमी है। उत्तर प्रदेश की स्थिति भी पहले चोर की माफिक हो गई है, और इसकी वजह है मीडिया। मीडिया में आजकल उत्तर प्रदेश छाया हुआ है, कानून व्यवस्था पर सवाल उठाती खबरें तकरीबन हर रोज देखने-सुनने में आ जाती हैं। पिछले कुछ दिनों से बलात्कार के मामलों पर मीडिया वाले ज्यादा नजर गड़ाए हुए हैं। ऐसा लगता है जैसे उनकी मंशा यूपी को रेप कैपिटल करार देने की है। वैसे जिस तरह से एक के बाद एक बलात्कार के मामले सामने आ रहे हैं वो वाकई चिंताजनक है और पुलिस प्रशासन को कटघरे में खड़ा करते हैं। महज चंद घंटों में चार-पांच घटनाएं छोटी बात नहीं है, लेकिन ऐसा भी नहीं है कि इस तरह की घटनाएं केवल यूपी तक ही सीमित हैँ। दूसरे राज्यों में नाबालिगों को हवस का शिकार बनाया जा रहा है, अभी हाल ही में मुंबई में एक दिन में दो रेप के मामले सामने आए। दो अलग-अलग जगह एक नाबालिग और एक विधवा को शिकार बनाया गया। लेकिन इस पर मीडिया में कोई हो-हल्ला नहीं मचा। न तो खबरिया चैनलों ने इन घटनाओं को तवज्जो दी और न ही अखबारों ने इन्हें प्रकाशित करने की जहमत उठाई। अपराध तो अपराध है फिर चाहे वो यूपी में हो या महाराष्ट्र में। अगर मीडिया यूपी के जंगलराज को जंगल में आग की तरह फैलते दिखा सकती है तो उसे दूसरे राज्यों में बढ़ते अपराध को भी उसी तरह से देखना चाहिए। इस बात में कोई दो राय नहीं कि उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था के हाल अच्छे नहीं हैं। सत्ता में बैठी पार्टी के सदस्य और विधायकों की जुर्म में हिस्सेदारी भी सामने आ रही है। चंद रोज पहले एक बीएसपी विधायक की गाड़ी में सवार लोगों ने युवतियों से बलात्कार का प्रयास किया। हालांकि पुलिस ने इसमें कार्रवाई की लेकिन कार्रवाई सजा तक पहुंचेगी इसमें अभी भी संशय बना हुआ है। बांदा रेप कांड, इंजीनयिर हत्या कांड की असलियत हर कोई जानता था। लेकिन फिर भी इसका ये मतलब नहीं कि अपराध अकेले उत्तर प्रदेेश में ही होते हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो ने जनवरी में जो आंकड़े जारी किए थे उनके मुताबिक मध्यप्रदेश की आर्थिक राजधानी कहे जाने वाला इंदौर इस मामले में देश में सबसे अव्वल रहा। इंदौर के बाद भोपाल और फिर जयपुर अपराध के पायदान पर रहे। जहां तक दिल्ली की बात है तो पूरे देश में हुए बलात्कार की घटनाओं में उसके कोटे में एक चौथाई आए। इसी तरह अपहरण के एक तिहाई मामले दिल्ली के खाते में गए। दहेज हत्या और छेड़छाड़ में भी देश की राजधानी का दबदबा रहा। उत्तर प्रदेश इस सूची में इन सब शहरों से नीचे रहा, महिलाओं के साथ अपराध के मामले में यूपी को 26वां स्थान मिला। फिर भी मीडिया यूपी को अपराधियों का गढ़ साबित करने से नहीं चूकता। 2011 के शुरूआती चार महीनों में ही केरला में 357 रेप के मामले सामने आ चुके हैं, यानी एक दिन में तीन से ज्यादा बलात्कार। बावजूद इसके खबरचियों का ध्यान इस ओर नहीं गया।
यूपी के साथ अक्सर ऐसा होता है कि उससे जुड़ी छोटी से छोटी खबर को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता है लेकिन दूसरे राज्यों की बड़ी से बड़ी घटना को भी मामूली करार दिया जाता है। उत्तर प्रदेश को लेकर जिस तरह का रुख मीडिया ने अपना रखा है उससे तो यही लगता है कि वो एंटी यूपी मिशन पर है। दरअसल, अगले साल यूपी में विधानसभा चुनाव होने हैं, इसलिए विपक्षी दल खासतौर पर कांग्रेस राज्य में माया विरोधी हवा को और तेज करना चाहते हैं इसलिए मीडिया के राजनीतिक करण से इंकार नहीं किया जा सकता। वैसे भी आज के वक्त में मीडिया की विश्वासनीयता बची ही कहां है। सब जानते हैं कि खबर के लिए कैसे पूरी की पूरी कहानी खुद ही रच दी जाती है। राहुल गांधी ने जब भट्टा परसौल में बलात्कार और हत्याओं के आरोप लगाए तो मीडिया वालों के लिए यही सच हो गया। चैनल से लेकर अखबार तक मायाराज को जंगलराज से भी बदतर बताया गया, लेकिन ये जानने की कोशिश नहीं की गई कि आखिर आरोपों में कितनी सच्चाई है। अब जब ये साफ हो गया है कि भटट परसौल पर राहुल गांधी के आरोप निराधार थे तो खबर गढऩे वाले खामोश बैठे हैं। अब न उन गांवों में कैमरे दिखाई देते हैं और न कलम थामे पत्रकार। जो मीडिया पूर्व राष्ट्रपति की मौत की झूठी खबर फैला दे और माफी भी न मांगे उसकी विश्वसनीयता क्या होगी ये बताने की शायद जरूरत नहीं। हाल ही में एक टीवी चैनल के पत्रकार के साथ पुलिस की बदसलूकी के बाद तो खबर्ची जमात माया सरकार के खिलाफ खुलकर सड़क पर उतर आई है। प्रदर्शन हो रहे हैं, नारे लगाए जा रहे हैं। इस बहती गंगा में कांग्रेस और सपा भी हाथ धोने में लगे हैं। इस बात की पूरी संभावना है कि आने वाले दिनों में मिशन एंटी यूपी में कुछ और नई कडिय़ा देखने-सुनने में आएं।
ऐसा नहीं है कि मीडिया के निशाने पर यूपी केवल मायावती के शासनकाल में ही आया है, मुलायम सिंह जब मुख्यमंत्री थे तब भी उत्तर प्रदेश की गिनती सबसे बुरे राज्यों में होती थी। तब नेता-अपराधी गठजोड़ और अब की तरह अपराध खबरनवीसों के सबसे प्रिय मुद्दे थे। मायावती के आने के बाद उत्तर प्रदेश में कुछ खास बदलाव नहीं हुआ है, खासकर जनता की मूलभूत जरूरतें वैसे की वैसी हैं। न मुलायम ने उन पर ध्यान दिया और न मायावती दे रही हैं, लेकिन मीडिया में कभी भी यूपी की मूल समस्या को जगह नहीं मिली। जब खबर आती है, अपराध से जुड़ी हुई आती है, अगर मीडिया आम आदमी से जुड़े दूसरे जरूरी मुद्दों को भी इसी प्रमुखता से उठाता तो शायद बिजली-पानी के लिए तरस रही यूपी की जनता को थोड़ी बहुत राहत मिल गई होती। लेकिन मीडिया तो मीडिया ठहरी, उसके लिए केवल वो ही खबरें मतलब रखती हैं जो उसके फायदा का अहसास करा सकें। अपराध के ग्राफ को खुलकर प्रचारित-प्रसारित करने से उन्हें चुप रहने के ऐवज में कुछ न कुछ जरूर मिल जाएगा। अगर यहां से नहीं मिला तो दूसरे दल भी हैं जो मायावती के सिंहासन को हिलाकर अपनी दाल गलते देखना चाहते हैं। ऐसे में खबरगढऩे वालों की तो चांदी ही चांदी है। उत्तर प्रदेश की जनता शायद खुद भी महसूस कर रही होगी कि मायावती की विदाई का वक्त आ गया है, उसने बसपा से जो अपेक्षाएं की थीं वो उस पर खरी नहीं उतर पाई, मगर सिर्फ और सिर्फ यूपी पर ही मीडिया वाले कीचड़ उछालें ये उन्हें भी मंजूर नहीं होगा। बेहतर होगा यदि एक चोर को चोर कहा जाए तो दूसरे को भी इसी नजर से देखा जाए।
Subscribe to:
Posts (Atom)