Wednesday, July 1, 2009

क्योंकि प्यार में सब जायज है

नीरज नैयर
प्यार का बुखार आजकल तेजी से फैल रहा है, जहां भी नजर घुमाओं लवेरिया से पीड़ित एक दो जोड़े दिखाई दे ही जाते हैं. आलम ये है कि 40-50 डिग्री टैम्परेचर में भी पार्क के किसी कोने में इनका प्यार परवान चढ़ रहा होता है. दिल्ली तो वैसे भी प्यार में डूबे पंक्षियों की शरणस्थली रहा है, यहां के पार्कों में बढ़ी ही तल्लीनता से इश्क फरमाया जाता है. हर डाली के पीछे एक दो फूल माली की परवाह किए बिना आलिंगनबध्द होकर सुखद अनुभव की प्राप्ती में लीन रहते हैं. यह नजारा आंखें सेकने वालों के लिए भी स्वर्णिम साबित होता है, क्योंकि बिना टिकट खरीदे ही वो फिल्मी सीन के साक्षात दर्शन कर लेते हैं. कुछ वक्त पहले तक खाकी वर्दी वाले भी ऐसे सीन की तलाश में पिलर टू पोस्ट करते नजर आ जाते थे ताकि प्यार पर टैक्स वसूल किया जा सके. लेकिन अदालत के फरमान के बाद बेचारे मन मारने को मजबूर हैं. खैर जो कुछ भी हो आजाद ख्यालात वाली दिल्ली में सबकुछ खुले तौर पर तो होता है, लेकिन एक दूसरी राजधानी यानी भोपाल की बात करें तो यहां सब गोलमाल है.

चेहरा ढ़कने का चलन यहां इतने जोरों पर है कि एक बारगी तो लगता है कि हम पाकिस्तान या अफगानिस्तान के किसी शहर में आ पहुंचे हों. जिसे देखो वो नकाब लगाए फुर्र हुए जा रही हैं. सूरमा भोपाली की नगरी में युवतियों का नकाब प्रेम इस कदर बढ़ गया है कि शायद रात के अंधेरे में भी उन्हें चेहरा दिखाने से परहेज हो. वैसे जनाब नकाब के फायदे ही इतने हैं कि बालाएं चाहकर भी उसे नहीं उतार सकतीं. वो प्रेमी के हाथ में हाथ डालकर घूम सकती हैं, बाइक पर ऐसे चिपककर बैठ सकती हैं कि हवा भी पास न हो, किसी से नजरें चुराए बिना रेस्तरां में बैठकर डेटिंग कर सकती हैं, तो सिर्फ और सिर्फ नकाब की बदौलत. यानी आप चेहरे से तो किसी को पहचान ही नहीं सकते, हां अगर गणित में माहिर हैं तो फिगर से अंदाजा लगाने का प्रयास जरूर कर सकते हैं, वैसे ये काम भी आसान नहीं, क्योंकि फिगर भी आजकल टाईप-टाईप के हो गये हैं. यहां उनका विवरण देना सेंसर बोर्ड को कैंची चलाने का न्यौता देना होगा लिहाजा उसे पढ़ने वाले के विवक पर ही छोड़ देते हैं. वैसे अगर देखा जाए तो उन तालिबानी कमांडरों के लिए जो महिलाओं को ढ़कने की जद्दोजहद में लगे रहते हैं भोपाली बालाएं एक मिसाल हो सकती हैं, वो बिना किसी फरमान के गैर मर्दों की नजर अपने चेहरे पर नहीं पड़ने देतीं.

बहरहाल जब उनके घर वालों को परेशानी नहीं तो हमें क्या, हमने कौनसा समाज सुधारक बनने का ठेका उठा रहा है. पर इस टॉपिक से साइड लेने से पहले एक दो-चार बातें मराठा नगरी यानी नागपुर की भी कर लेते हैं, वहां की बालाओं पर भी नकाब प्रेम चढ़ गया था मगर पुलिसिया सनक ने प्यार को परवान नहीं चढ़ने दिया. धकाधक इतने चालान काटे कि चेहरा ढ़कने का ख्वाब हकीकत में नहीं बदल पाया. यहां तक तो सब ठीक था पर आजकल प्यार नए-नए रूप भी सामने आने लगा है. पाकिस्तान के सिंघ जिले के बदीन में खाकी वर्दी धारी माफ कीजिएगा खाकी वर्दी तो वहां होती नहीं, नीली-पीली जो भी हो वर्दी पहने मौलवीनुमा पुलिस वालों ने प्यार के दीवाने को पिंजरे में कैद कर लिया. हालांकि उसका प्यार जमाने से थोड़ा हटकर था लेकिन प्यार तो प्यार ही होता है फिर चाहे वह खूबसूरत बला से हो किसी किन्नर से. ये महाशय अल्लाह बचायो किन्नर सरवत फकीर को अपना बनाने जा रहे थे, इसके लिए बाकायदा हाथों में महंगी लागाई गई, दावत रखी गई थी, कुछ खासमखास दोस्त भी बुलाए गये मगर काफिर पुलिस ने उसकी हसरत पूरी नहीं होने दी. इस मामले से कुछ हटकर समलैंगिक प्यार के तराने भी इन दिनो खासे सुनाई पड़ रहे हैं. एक जैसी शारीरिक बनावट वाले लोगों के दिल में एक-दूसरे के लिए प्यार का वो तूफान उमड़ रहा है कि इसकी मुखालफत करने वाले भी खुद को अकेला समझने लगे हैं. सात समुंदर पार तो ऐसे दिलों का मिलना आम बात है, लेकिन अब तो राधा-किशन की धरती यानी भारत में भी प्रेम का यह रूप दर्शन देने लगा है. बात इतनी पुरानी भी नहीं है इसलिए अब तक याद है, पश्चिम बंगाल में दो समलैंगिक युवतियों के विवाह को उनके घरवालों ने मंज़ूरी दे दी थी. हावड़ा जिले की दो युवितियों रिंकू मंडल और तनुश्री मान्ना ने घर से भाग कर शादी कर ली थी.
दुर्गापूजा की धूमधाम के बीच नवमी को दोनों जयपुर से लौटकर हावड़ा पहुंचीं और पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया. दोनों के घरवालों ने उनकी इस शादी पर न सिर्फ अपनी मुहर लगा दी, बल्कि उनमें से एक युवती के घरवालों ने तो भविष्य में उनके लिए एक बच्चा गोद लेने का भी फैसला तक कर डाला, आश्चर्यजनक किंतु सत्य. खैर यादों के जहाज पर सवार होकर भारत की सीमा के पार चलें तो ऐसे भी मामले मिलेंगे जो अनोखे प्यार की कहानी बयां करते हैं. अमेरिका के टेक्सस के डैलस शहर में समलैंगिकों के लिए बना सबसे बड़ा चर्च पिछले तीस सालों से भी यादा समय से मौजूद है, यहां हर उम्र के गे, लेस्बियन जोड़े, अपने बच्चों के साथ, यादातर ऐसे बच्चे जिन्हें उन्होंने गोद लिया है या फिर जिन्होंने टेस्ट टयूब बेबी पैदा किए और उन्हें पालपोस कर बड़ा किया है, उतने ही मन से जीसस को याद करते हुए दिखेंगे जैसे दूसरे चर्चों में दिखता है. इस पूरी रामयाण की मोरल ऑफ द स्टोर ये है कि न सिर्फ प्यार की परिभाषा बदल रही है बल्कि प्यार करने के मानक भी बदल रहे हैं, वैसे कहने वाले कहते हैं कि प्यार के कोई मानक नहीं होते. प्यार कभी भी, कहीं भी, किसी से भी हो सकता है. प्यार के लिए नकाब लगाया भी जा सकता है और उठाया भी क्योंकि प्यार में सब जायज है.