Wednesday, July 16, 2008

PUPPY LOVE



By: Swati Sudha
Remember the days you are at home all by yourself with no one to talk to, and then you start fidgeting and becoming restless. You don’t get anything worth watching on T.V, cant concentrate on your work ,have had enough of sleep. You don’t know what to do next. Are these the symptoms you show? If yes, then my friend you suffer from a little bit of loneliness .But don’t worry I have just the right cure for you. I suggest indulge yourself in some ‘PUPPY LOVE’. Hey! don’t get me wrong. I have a simpler definition of this term. I just mean bring home a pet. A puppy may be.
Being an animal lover I strongly advocate adopting a pet, because this will not only cure your loneliness but also give an innocent animal a family.
Staying home alone for the major part of the day with no one to talk to,I rely on my dog to give me company. If you are someone with ‘the gift of gab’ like I am, then there’s no better audience than a pet. The reason being simple-you can keep talking and the pets just listen. They never interrupt or answer back. They believe all that you say and never question. And if you are a girl you can be assured because pets never disclose your secret. For those readers who are finding me crazy for talking to my pet I will just say you have to see it to believe it .This kind of puppy love is really good.
The best part about having a pet as your friend is that you can tell them about all your achievements and they never ask for a treat (something very useful for a penniless person like me).Also pets never quarrel, never yell at you, never expect too much and never make stupid demands like humans. They just ‘give’, their unconditional love and loyalty. Even if you leave them alone at home and return very late, they never get annoyed, never nag. They are always happy to see you more than anyone else. And when you are too sad to speak to anyone they sit by your side to comfort you. No matter how many times you scold them they come to you with their tails wagging behind them.
And if you are thinking that with a pet comes responsibility, then I’ll say you are right. Taking care of a pet is like taking care of a baby, but once they get older they start taking care of you. All they need is a little bit of attention and a whole lot of affection. But believe me these cute animals are far better than human companions in every way for they are ‘selfless’. So next time when someone swears at you calking you a dog or for that matter an animal, take it as a compliment. And if loving a human doesn’t always work for you try Puppy Love.

Swati Sudha

IN THE NEWS

Swati Sudha
Is it not strange that every time there’s something weird or depressing happening around us the news channels always have it on tape? Yes, something when exposed to media have positive repercussions, but, there is always another side to the coin. Remember that news when down in south a bride was mercilessly beaten up by her father because she didn’t want to marry. I mean showing all this on T.V was good as it brought into light the violence against women but why didn’t the media stop the man from thrashing his daughter instead of recording it all? It was because they wanted NEWS. If they would have just ‘said’ that a bride was beaten up then the real effect would be missing. Visual stimuli are more effective in catching attention than audio stimuli and audio visual still better. During a natural calamity the T.V will find an old man trapped beneath the debris and instead of pulling him out they’ll roll the camera so that they have NEWS.
A few days back a young girl was found dead in a car ‘bare bodied’. Well was that news to be telecast nation wide? The media stressed on the word ‘naked’ every time one heard the news. As it is the family was shattered by the death of their daughter and to add to their misery the media was busy embarrassing them by telling the entire nation that the girl was naked. Would they do the same if it was their daughter? Was this very personal issue a topic for national news? And also when a dalit woman was being beaten up in public, they had it on tape. I mean even when someone is being murdered then instead of saving that person they want to save their own skin and make news. What kind a world do we live in? Even when somebody is preparing to burn himself up the T.V people won’t stop him from killing himself. And why would they, after all this gives them NEWS to keep the audience glued to the T.V for one whole day or more. This is the plight of our nation. The media people cannot be blamed alone. The rule is that whatever is demanded that will be supplied the public itself is not satisfied by the distressing news they hear. They want pictures and videos to top it all up. So every time you turn on your T.V you will find all the irrelevant issues being shown as ‘the news’ which has no importance for the nation as a whole. But whatever is spicy enough to make the audience lick their fingers it’s got to be IN THE NEWS.

Swati Sudha

नहीं थमेगी पगार पर तकरार?

नीरज नैयर

वेतन आयोग की रिपोर्ट पर मचे बवाल के बाद सरकार मंथन में जुटी है पर इस बात की उम्मीद कम ही नजर आती है कि बीच का कोई रास्ता निकाल लिया जाएगा. जानकारों के अनुसार सरकार इस मामले को बस कुछ समय के लिए टाले रखना चाहती है क्योंकि महंगाई और करार को लेकर पहले से ही हा-हाकार मचा हुआ है.
वेतन आयोग की रिपोर्ट आने के कुछ समय बाद ही इसको लेकर विवाद खड़ा हो गया था. आयोग ने अपनी सिफारिशों में मुख्य रूप से क्रीमी लेयर को ही प्रभावित करने की कोशिश की है. मौजूदा आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक न्यूनतम और अधिकतम वेतन अनुपात 1:12 से अधिक है, जो कि पिछले वेतन आयोग की सिफारिशों से कहीं ज्यादा है. आयोग की सिफारिशों में जहां अधिकारियों और कर्मचारियों के वेतनमान में भारी असमानता व विसंगतियां हैं, वहीं भत्तों के आवंटन में भी भेदभाव किया गया है. सबसे हैरत की बात तो यह है कि आयोग ने जहां एक ओर उच्च श्रेणी के अधिकारियों के वेतन में 100 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि की है, वहीं निम्न श्रेणी के कर्मचारियों के वेतन और भत्तावृद्धि 23 से 50 प्रतिशत के आस-पास ही रखी है. आयोग ने शीर्षस्थ कैबिनेट सचिव के वेतन में करीब 35500 रुपए की वृद्धि की बात कही है, जबकि निम्न श्रेणी के क्लर्क के वेतनमान में मामूली बढ़ोत्तरी की सिफारिश की गई है. निम्न स्तर के मुकाबले उच्च श्रेणी में 24 गुना वृद्धि समता के सिद्धांत पर कहीं से भी खरी नहीं उतरती. पूर्ववर्ती वेतन आयोगों ने अपनी सिफारिशों में प्रचलित वेतन, भत्ता, महंगाई भत्ता और अंतरिम राहत में बढ़ोत्तरी में सभी श्रेणियों के लिये 20-40 प्रतिशत एक सरीखी वृध्दि देने को कहा था पर छठे वेतन आयोग ने इससे उलट ही काम किया है.
मौजूदा आयोग की सिफारिश में जैसे-जैसे श्रेणश्नियां और वेतन भत्ते बढ़ते हैं, वैसे-वैसे वेतन भत्तों आदि में बढ़ोत्तरी होती है. पांचवे वेतन आयोग में श्रेणी-1 के दायरे में आने वाले वरिष्ठ स्तर के अधिकारियों को बेसिक वेतनमान 14300 से 26000 निर्धारित था जिसे बढ़ाकर अब 48200 से 67000 करने की सिफारिश की गई है. यानी करीब 34000-41000 का भारी भरकम इजाफा वेतनमान में किया गया है. वहीं श्रेणी-1 के मध्य स्तर के अधिकारियों का वेतनमान 8000-20900 के बजाए 21000-39100 करने की बात कही गई है. मतलब 13000-18200 का इजाफा जबकि श्रेणी-॥ व ॥। में करीब 8000-21000 और श्रेणी ढ्ढङ्क में मामूली बढ़ोत्तरी का प्रस्ताव है. इसके साथ ही आयोग ने करीब 12 लाख ग्रुप डी कर्मचारियों के पदों को खत्म करने की सिफारिश की है. इनमें से एक लाख पद तो फिलहाल रिक्त पड़े हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्रुप डी पदों पर जो कर्मचारी अभी कार्यरत् हैं, उनमें से न्यूनतम हाईस्कूल योग्यता रखने वाले कर्मचारियों को ग्रुप सी में प्रमोट कर दिया जाए और बाकी ग्रुप डी के पदों पर नई भर्तियां न की जाए.
नई भर्तियों के बजाए मौजूदा पदों को ही समाप्त करने की सिफारिश से पता चलता है कि आयोग ने रोजगार बढ़ाने के बजाए बेरोजगार बढ़ाने वाली नीतियों पर जोर दिया है. आयोग की रिपोर्ट आने से पहले यह मानकर चला जा रहा था कि छठे वेतन आयोग में खासतौर से सेना और आंतरिक सुरक्षा का जिम्मा संभाल रहे सुरक्षा बलों का खास ध्यान रखा जायेगा. मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ. अधिकारियों की कमी से जूझ रही सेना ने वेतनमान में 100-200 प्रतिशत वृध्दि की मांग की थी. ताकि निजी क्षेत्र की चकाचौंध अफसरों को प्रभावित न कर पाए, मगर आयोग ने सभी मांगों को दरकिनार करते हुए सेना के हाथ में मामूली बढ़ोत्तरी का लॉलीपॉप थमा दिया है. सेना के जवान महसूस कर रहे हैं कि नागरिक सेवाओं के मुकाबले उनके साथ दोयम दर्जे का बर्ताव किया गया है. जवानों के वेतन में महज 1000 रुपए की मामूली बढ़ोत्तरी की गई है, वहीं लेफ्टिनेंट कर्नल और कर्नल के वेतनमान में भी मुश्किल से चार-पांच हजार का इजाफा किया गया है. जबकि नागरिक सेवा में उच्च श्रेणियों के कर्मचारियों के वेतन और भत्तों में कई गुना वृध्दि की सिफारिश की गई है. ऐसे ही आयोग की सिफारिशों ने आखिल भारतीय सेवाओं में भी असमानता उत्पन्न कर दी है. आयोग ने यहां भारतीय प्रशासनिक अधिकारियों (आईएएस) को खुश करने के लिये दोनों हाथ से लुटाने का प्रयास किया है. वहीं भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) और भारतीय वन सेवा(आईएफएस) को नजरअंदाज कर दिया है. छठे वेतन आयोग द्वारा भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारियों के लिए सीनियर स्केल, जूनियर स्केल और सिलेक्शन ग्रेड वेतनमान 6100, 6600 और 7600 रुपए रखा गया है. जबकि भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारियों के लिये क्रमश: 6500, 7500 तथा 8300 की सिफारिश की गई है. इसके पीछे आयोग का तर्क है कि आईएएस अफसरों की प्रारंभिक तैनाती सामान्यता छोटी जगहों पर होती है. उन्हें बार-बार स्थानांतरण का सामना करना पड़ता है और सेवा के शुरुआती दिनों में जिस दबाव का सामना करना पड़ता है, वह औरों से कहीं ज्यादा है. यहां यह साफ करना जरूरी है कि सेवा के प्रारंभ काल से लेकर अंत तक भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी आईएएस अफसरों की अपेक्षा कहीं अधिक तनावपूर्ण, जोखिमपूर्ण और दबावपूर्ण परिस्थितियों में काम करते हैं. इस बात को खुद सुप्रीम कोर्ट और सोली सोराबजी समिति स्वीकार कर चुकीहै.
ऐसे में आयोग का यह तर्क हास्यास्पद ही लगता है. इसके साथ ही राजस्व सेवा एवं कस्टम व केंद्रीय उत्पाद शुल्क के अधिकारियों के लिये 80000 रुपए वेतनमान तय किया गया है, वहीं प्रदेशों की कानून व्यवस्था की कमान संभाल रहे पुलिस महानिदेशकों के वेतन में असमानता रखी गई है. वेतन आयोग ने सीमा सुरक्षा बल, केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल, भारत तिब्बत सीमा बल, औद्योगिक सुरक्षा बल और सशक्त सीमा बल के पुलिस महानिदेशकों का वेतन रु. 80000 निर्धारित किया है जबकि प्रदेश स्तर पर इसमें विभिन्नता रखी गई है जो कहीं से भी तर्कसंगत नहीं है. राज्यों के मुख्य सचिवों और पुलिस महानिदेशक के वेतन में असमानता की खाई भी छठे वेतन आयोग ने और चौड़ी कर दी है. आयोग की सिफारिश में कास्टेबल स्तर के पुलिस कर्मी के वेतनमान में महज 100-500 रुपये तक की वृध्दि का अनुमान है. जबकि यह सभी जानते हैं कि पुलिस महकमे में निचले स्तर के पुलिस कर्मियों का जनता से सीधा संवाद होता है. ऐसे में मामूली तनख्वाह के भरोसे परिवार की जिम्मेदारियों के साथ वह कब तक कर्तव्यनिष्ठता की राह पर चल पाएगा. आयोग को इस बात का ध्यान रखना चाहिए था कि ऊपर से लेकर नीचे तक वेतनमान में वृध्दि का तालमेल इस तरह से बैठाया जाए कि किसी को यह न लगे कि हमारे साथ अन्याय हुआ है. पुलिस महकमे मे सुधार की बातें हमेशा से उठती आई हैं, मगर जब तक पुलिस कर्मियों की आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए ठोस कदम नहीं उठाए जाते, ऐसी बातें बेमानी हैं. केंद्रीय कर्मचारियों में (रेलवे छोड़कर) पुलिस का हिस्सा करीब 41 प्रतिशत है जबकि इस पर महज 36 प्रतिशत ही खर्च किया जाता है. हर साल करीब 1000 जवान डयूटी के दौरान शहीद हो जाते हैं, उनका घर परिवार हर वक्त दहशत के साए में जीता रहता है. बावजूद इसके आयोग ने इनका कोई ध्यान नहीं रखा है. ऐसे ही भारतीय वन सेवा के अधिकारी भी वेतन आयोग की विसंगतियों का सामना कर रहे हैं. उनका आरोप है कि आयोग ने उनका पे स्केल घटा दिया है. अब तक आईएएस और आईएफएस के वेतनमान में सिर्फ 2-3 हजार रु. का अंतर था लेकिन नये पे स्केल लागू होने के बाद यह 15-18 हजार हो जाएगा. दरअसल तकरीबन 18-20 साल की सेवा पूरी करने के बाद एक आईएएस अफसर वन संरक्षक बनता है. इस पद का सुपर टाइम स्केल अभी 16400 से शुरू होता है लेकिन आयोग ने इस स्केल को घटाकर 15600 करने की अनुशंसा की है. जबकि 14 साल की सर्विस पूरी करने के बाद एक आईएएफ अधिकारी का सुपर टाइम स्केल अभी 18400 है जिसे बढ़ाकर 39200 करने की सिफारिश की गई है. यानी दोनों सेवाओं के अफसरों के वेतनमान में दोगुने का अंतर किया गया है. इसी तरह चीफ कंजर्वेटर ऑफ फारेस्ट (पीसीसीएफ) का मौजूदा स्केल 24040-26000 है.
इस पद पर आईएफएस अफसर अपने कार्यकाल के अंतिम 4-5 सालों में पहुंच पाते हैं. 2-3 साल की सेवा के बाद अफसर 26000 रुपये के स्केल तक पहुंच जाते हैं जो अभी भारत सरकार के सचिव के बराबर हैं. लेकिन नई सिफारिशों में इसे बढ़ाकर 39200-67000 रखा गया है. तथा 13000 के पे ग्रेड का प्रावधान किया गया है. परन्तु 13000 के पे ग्रेड को पाने में अफसरों को कम से कम 12 साल इस पद पर कार्य करना होगा. जबकि जो अफसर इस पद पर पहुंच पाते है उनका कार्यकाल महज 4-5 साल का ही बचता है. इसका परिणाम यह होगा कि इस सेवा के अफसर सचिवों की भांति 80000 वेतनमान अब नहीं पा पाएंगे. कुल मिलाकर कहा जाए तो छठा वेतन आयोग हर पक्ष को संतुष्ट करने में नाकाम रहा है|

इतिहास
आजादी के बाद से अब तक कुल 6 वेतन आयोग गठित किए गये हैं.
आयोग गठन वर्ष रिपोर्ट सौंपी गई वित्तीय भार
पहला मई 1946 मई 1947 उपलब्ध नहीं
दूसरा अगस्त 1957 अगस्त 1959 39.62
तीसरा अप्रैल 1970 मई 1973 144.60
चौथा जून 1983 मई 1987 1282
पांचवां अप्रैल 1994 जनवरी 1994 17000
छठा जुलाई 2006 मार्च 2008 20,000
(करोड़ )


क्या होता है वेतन आयोग
भारत सरकार हर 10 साल बाद एक वेतन आयोग का गठन करती है. जिसका काम केंद्रीय कर्मचारियों के वेतनमान को वर्तमान परिस्थितियों के हिसाब से निर्धारित करना होता है. आयोग में अध्यक्ष के साथ-साथ अन्य सदस्य भी होते हैं जिन्हें एक समयावधि में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपनी होती है. उसके बाद सरकार को अंतिम निर्णय लेना होता है कि किन सिफारिशों को लागू किया जाए और किसे नहीं|

छठा वेतन आयोग
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने जुलाई 2006 में जस्टिस बीएन श्रीकृष्ण की अध्यक्षता में छठे वेतन आयोग का गठन किया था, जिसने 24 मार्च 2008 को सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपी. इस आयोग में जस्टिस श्रीकृष्ण के अलावा रविंद्र ढोलकिया, जे.एस. माथुर और सुषमा नाथ शामिल थीं.