Thursday, May 23, 2013

वेश्यावृत्ति को क्यों न दी जाए कानूनी मान्यता?

 सट्टेबाजी का खेल राजा-महाराजाओं के जमाने से चला आ रहा है। पहले बेजुबानों की लड़ाई पर बाजी लगाकर लोग खुश हो जाया करते थे, लेकिन अब इसका स्वरूप काफी वृह्द हो गया है। नेताओं की जीतने, सरकार बनाने से लेकर लगभग हर खेल पर सट्टेबाजों की नजर रहती है। यहां तक की विदेशी खेलों पर भी हमारे देश के सट्टेबाज अपनी किस्मत आजमाना से नहीं चूकते। सट्टेबाजी भारत में कानूनन अपराध है, इसलिए ये खेल चोरी-छिपे खेला जाता है। एक छोटी सी दुकान चलाने वाला पनवारी भी इसका खिलाड़ी हो सकता है और किसी होटल का मालिक भी। इसके लिए ज्यादा तामझाम की जरूरत नहीं पड़ती, बस एक कम्प्यूटर और फोन से सबकुछ हो जाता है। खासकर क्रिकेट मैचों के दौरान सबसे ज्यादा सट्टेबाज पकड़े जाते हैं। पेशेवरों के साथ-साथ उन लोगों को भी पुलिसिया कोपभाजन का शिकार बनना पड़ता है जो शौकिया हाथ आजमा रहे थे। अब तक एक बात को साफ हो गई है कि तमाम सख्ती के बाद भी ये खेल रुकने वाला नहीं है, तो क्यों न इसे कानून मान्यता दे दी जाए। अगर ऐसा किया जाता है तो इसके तीन फायदे होंगे। पहला, सरकार की आय बढ़ेगी, दूसरा कालेधन को सफेद बनाने की प्रक्रिया पर लगाम लग सकेगी और तीसरा कानून का भय दिखाकर बेगुनाहों को परेशान करने की पुलिसिया मानसिकता में बदलाव आएगा। जो खेल गुपचुप तौर पर पर्दे के पीछे खेला जा रहा है वो सबके सामने होगा तो शायद इसमें शामिल होने वालों की संख्या अपने आप कम हो जाए। वैसे भी हमारे देश में जिसकी मनाही होती है वही काम सबसे ज्यादा किया जाता है। जैसे, अगर किसी दीवार पर लिखा है, यहां थूकना मना है तो सबसे ज्यादा पान की पीकें वहीं दिखाई देंगी।  यहां सोचने वाली बात ये भी है कि कोई अगर अपनी मनमर्जी से कहीं पैसा लगाता है तो इसमें अपराध जैसा क्या हो गया। बात केवल सट्टेबाजी की नहीं है, हमारे देश में ऐसा बहुत कुछ है जिसे बेवजाह कानूनी फंदे में उलझाकर रखा गया है। वेश्यावृति को ही लीजिए, दुनिया के कई देश जहां इसे कानूनी जामा पहना चुके हैं वहीं हम अब भी अपराध की श्रेणी में रखे हुए हैं। जोर-जबरदस्ती से तो बात समझ आती है, लेकिन अपनी मनमर्जी से जिस्म का सौदा करने वाली महिलाओं को भी गुनाहगार समझा जाता है। दरअसल, 21वीं सदी में भी रूढिवादी मानसिकता से बाहर नहीं निकल पाए हैं।

हम सेक्स करना तो चाहते हैं, लेकिन उसके सार्वजनिक उच्चारण में शर्म महसूस होती है।  हर इंसान इस बात को अच्छे से जानता है कि वो किसी क्षेत्र में अच्छा कर सकता है फिर यदि वेश्यावृति में किसी को अपना करियर नजर आता है तो हम-आप उस पर उंगली उठाने वाले कौन होते हैं। यहां मैं एक घटना का जिक्र करना चाहूुगा जिसका हाल ही में मैं गवाह बना। पत्रकार होने के नाते मुझे खबर मिली कि पुलिस ने पॉश इलाके में चल रहे एक सेक्स रैकेट का पर्दाफाश किया है। कुछ युवतियों को पकड़कर पुलिस थाने ले आई। तमाम मीडियाकर्मियों के साथ मैं भी थाने पहुंच गया। अपने चेहरे को दुपट्टे से ढंके एक युवती से जब सवाल किया गया कि तुम ये क्यों करती हो तो उसके जवाब ने कुछ देर के लिए सोच में डाल दिया। वो बोली, मेरा शरीर है, मैं इसके साथ चाहे जो करूं आपको परेशानी नहीं होनी चाहिए। इस जवाब को हम बेशर्मी कह सकते हैं, लेकिन उस सच्चाई को नहीं झुठला सकते जो इसमें नजर आती है। वेश्यावृति एक ऐसा व्यवसाय है जो लगातार फल-फूल रहा है। इसमें कोई दोराय नहीं कि यहां जोर-जबरदस्ती भी की जाती है, लेकिन अपनी मर्जी से इसका हिस्सा बनने वालों की संख्य़ा भी कम नहीं है। कम मेहनत में ज्यादा कमाई के चलते कई युवतियां सहर्ष इसमें शामिल हो जाती हैं। ऐसे अनगिनत मामले पुलिस और समाज के सामने आ चुके हैं, जिसमें उच्च शिक्षित परिवार की लड़कियों ने बगैर किसी दबाब के ये राह चुनी। लोगों को लगता है कि अगर वेश्यावृति को कानूनी मान्यता मिल गई तो 18 की दहलीज पार करते-करते ज्यादातर युवा कोठे की सीढिय़ां चढ़े लेंगे, लड़कियों का शोषण किया जाएगा। संभव है ऐसा हो, लेकिन ये लंबे वक्त तक कायम नहीं रहेगा। ऐसा इसलिए कि जब हम बहुतायत में कुछ प्राप्त कर लेते हैं तो उसकी अहमियत कम हो जाती है। विदेशों में सेक्स एक आम बात है, स्कूल से कॉलेज तक का सफर तय करते-करते युवा न जाने कितनी बार अपनी कामेच्क्ष का पूर्ति कर लेते हैं।

यहां तक कि उनके परिवार वालों को भी इसमें ज्यादा कुछ बुरा नजर नहीं आता। अगर वहां भी सेक्स को लेकर भारत जैसा माहौल होता तो उनके लिए भी ये किसी पाप से कम नहीं था। कहने का मतलब है कि अगर लोगों के पास अपनी सेक्स की पूर्ति के लिए आसान साधन उपलब्ध होंगे तो सेक्स को लेकर उनकी उत्तेजना और दिलचस्पी में निश्चित तौर पर कमी देखने को मिलेगी। इसके अलावा संभव है कि बलात्कार जैसे मामलों में भी कमी आए। हमारे देश में अगर अभिव्यिक्त की स्वतंत्रता है तो इस बात की आजादी भी मिलनी चाहिए कि हम अपने हिसाब जिंदगी गुजार सकें। अगर कोई सट्टा लगाकर या जिस्म का सौदा करके खुश है तो इसमें दूसरों को बुराई नजर नहीं आनी चाहिए। बेवजह के प्रतिबंध अपराध कम करने के बजाए उसमें इजाफा ही करते हैं। कहने को तो गुजरात में शराब पर प्रतिबंध है, बावजूद इसके वहां सबसे ज्यादा शराब पी जाती है। चोरी-छिपे अवैध तरीके से सारा खेल चलता है। इस बैन से केवल इतना हुआ है कि पीने वालों को ज्यादा दाम चुकाने पड़ रहे हैं और पुलिस को इस बिनाह पर उगाही का लाइसेंस मिल गया है। जिन देशों में वेश्यावृति को कानूनन मान्यता प्राप्त है, वहां बाकायदा इसका रिकॉर्ड रखा जाता है। इसकी भी व्यवस्था की गई है कि जबरन किसी को वेश्यावृति के लिए मजबूर न किया जाए। ये व्यवस्था हमारे देश में भी हो सकती है, बशर्ते हम अपनी सोच में बदलाव लाने के लिए तैयार हों।