नीरज नैयर
सचिन तेंदुलकर एक ऐसा नाम है जिसके साथ तारीफों से यादा आलोचनाएं जुड़ती रहीं। सचिन जैसे-जैसे सफलता के शिखर पर चढ़ते गए आलोचना करने वालों के मुंह और चौड़े होते गए। अभी हाल ही में जब इस लिटिल मास्टर ने टेस्ट मैचों में शतकों का पचासा पूरा किया तब भी आलोचना करने वालों के मुंह बंद नहीं हुए। इस बार भी तर्क वहीं पुराना था, सचिन महज रिकॉर्ड के लिए खेलते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि टीम इंडिया को दक्षिण अफ्रीका से पहले टेस्ट में पारी और 25 रनों से हार का सामना करना पड़ा। हालांकि टीम में 10 खिलाड़ी और भी थे, लेकिन उनके चलने न चलने पर किसी ने सवाल नहीं उठाया। वैसे सचिन पर सवाल उठाना उनकी विश्वसनीयता को और पुख्ता करता है। जिससे सबसे यादा उम्मीदें होती हैं, उसी से करिश्मे अपेक्षाएं की जाती हैं। मगर इसका ये मतलब नहीं होना चाहिए कि अपेक्षाओं के पूरा न होने की स्थिति में क्षमताओं पर ही संदेह प्रकट किया जाए। सचिन तेंदुलकर के हजारों-करोड़ों प्रशंसकों के साथ ऐसे लोगों की जमात भी कम नहीं है जो हर पल सवाल उठाते हैं कि सचिन अहम मौकों पर क्यों असफल हो जाते हैं। दरअसल सचिन आम इंसान न रहकर लोगों के लिए रन बनाने की मशीन बन गए हैं, और जब इस मशीन के बल्ले से रन नहीं निकलते तो आलोचनाओं का दौर शुरू हो जाता है। हालांकि आलोचना करने वालों के पास अपनी बातों को सही साबित करने का कोई ठोस आधार नहीं है।
चंद मौकों को छोड़ दिया जाए तो क्रिकेट की दुनिया ये भगवान हर मोड़ पर अपनी श्रेष्ठता सिध्द करता आया है। जो लोग ये बोलते हैं कि सचिन अहम मुकाबलों में कोई कमाल नहीं कर पाते, वो शायद इतिहास से अंजान है या फिर जानबूझ कर अंजान बने बैठे हैं। 1990-91 का एशिया कप, 1994-95 की विल्स वर्ल्ड सीरिज, 1997-1998 का कोका कोला कप, सिंगर-अकाई कप, इंडिपेंडस कप, 1998-99 की चैम्पियन्स ट्रॉफी, 2007-08 में खेली गई सीबी ट्राई सीरिज, कॉम्पैक कप और टाइटन कप के फाइनल में सचिन के शानदार प्रदर्शन को कैसे भूला जा सकता है। कोका कोला कप में तेंदुलकर ने 131 गेंदों में 134 रनों की पारी खेली थी, ऐसे ही अकाई कप में 128, चैम्पियंस ट्रॉफी में 121, सीबी ट्राई सीरिज में 117, कॉम्पैक कप में 138, इंडिपेंडस कप में 95, टाइटप कप में 67, विल्स सीरिज में 66 रन और एशिया कप के फाइनल में 70 गेंदों में 53 रन बनाए थे। कुछ ऐसे ही 1998 में खेले गए मिनी वर्ल्ड कप के क्वार्टर फाइनल में सचिन ने ऑस्ट्रेलिया के विरुध्द 141 रन और पांच विकेट लेकर टीम को जीत दिलाई थी। क्रिकेट देखने वाले हर शख्स को धूल भरी आंधी के बीच शारजहां कप का वो मैच जरूर याद होगा जिसमें तेंदुलकर ने 131 गेंदों में 141 रनों की तूफानी पारी खेलकर अपने बूते भारत को फाइनल में पहुंचाया।
इस मैच का सबसे अफसोसजनक हिस्सा था सचिन का आऊट होना, अफसोसजनक इसलिए क्योंकि लिटिल मास्टर के पवेलियन लौटने के बाद टीम के बाकी खिलाड़ी जीत के लिए चंद रन भी नहीं जुटा सके। इस मैच में सचिन को गिलक्रिस्ट ने विकेटों के पीछे लपका, लेकिन उन्होंने खुद ने इसकी अपील नहीं की और न ही अंपायर ने उन्हें आऊट दिया फिर भी खेल भावना का परिचय देते हुए सचिन स्वयं चले गए। यहां गौर करने वाली बात ये है कि अगर वो महज रिकॉर्ड के लिए खेलते तो क्या ऐसा कर पाते, जबकि वो 150 से महज 9 कदम दूर थे। 1999 में पाकिस्तान के खिलाफ टेस्ट मैच में सचिन ने कमर पर बर्फ का बैग लागाकर और दवाईयां खाकर मोर्चा संभाला, लेकिन जब वो आऊट हुए तो उनकी जमकर आलोचना की गई। क्योंकि हमारे दूसरे खिलाड़ी बचे हुए 16 रन भी नहीं बना सके। इसी तरह 2007 में वेस्टइंडीज के साथ मैच में 85 पर होने के बाद भी सचिन धोनी को स्ट्राइक देते रहे और आखिरी गेंद पर अपना शतक पूरा किया। क्या इतने सब के बाद भी कहा जा सकता है कि सचिन अहम मौकों पर असफल रहे या वो टीम के बजाए महज अपने रिकॉर्ड बनाने के लिए खेले। किसी गलती पर आलोचना करने में कोई बुराई नहीं है लेकिन हर बात पर आलोचना एक तरह की बीमारी है। और भारत जहां क्रिकेट को धर्म के रूप में देखा जाता है, इस बीमारी से पीड़ितों की कोई कमी नहीं है। सचिन को अगर क्रिकेट का भगवान कहा जाता है तो इसके पीछे सिर्फ उनके रिकॉर्ड ही नहीं मैदान के अंदर और बाहर सौम्य, विनम्र एवं मृदुभाषी व्यक्ति की छवि भी है।
एक बात जो हर इंसान को उनसे सीखने की जरूरत है वो ये कि सचिन चुनौती और आलोचनाओं का जवाब मुंह से नहीं बल्कि अपने बल्ले से देना पसंद करते है। उनके प्रदर्शन के आगे कोई भी आलोचना यादा देर तक नहीं टिक सकती। बीच में एक वक्त ऐसा भी आया जब अलोचकों ने उन्हें क्रिकेट से सन्यास लेने तक का मशवरा दे डाला, लेकिन सचिन ने बिना बोले इन सबका का जवाब बेहतरीन अंजाद में दिया। सचिन में एक अजीब सी जीवटता है जो उन्हें दूसरों के अलग बनाती है, और शायद उनकी सफलता की वजह है। सचिन आज भी जब क्रीज पर उतरते हैं तो उनके लिए व्यक्तिगत रिकॉर्ड से यादा तिरंगे की शान बनाए रखना यादा मायने रखता है। वो सचिन तेंदुलकर ही थे जिन्होंने अपने व्यक्तिगत दर्द को दरकिनार करते हुए पिछले विश्व कप में भारत की झोली में कई जीतें डाली। अगर सचिन महज अपने लिए खेलते तो पितृशोक की खबर सुनने के बाद विश्व कप छोड़कर भारत लौट आते। मुझे और मेरे जैसे बहुत से लोगों को सचिन और उनका खेल पसंद है, लेकिन इसे अंधभक्ति नहीं कहा जा सकता। सचिन आज जिस मुकाम पर हैं वो उन्होंने खुद ही हासिल किया है, उन्हें यदि क्रिकेट का भगवान कहा जाता है तो वो जगह उन्होंने कई साल मैदान पर पसीना बहाकर कमाई है। क्रिकेट की दुनिया में भारत ने जो ऊंचाईयां छुई हैं उनमें सचिन का योगदान सबसे यादा है। सचिन रमेश तेंदुलकर की आलोचना करने वाले आखिर कैसे इन तथ्यों को नजरअंदाज कर सकते हैं, कैसे।