नीरज नैयर
बेनजीर भुट्टो की हत्या से जुड़े कुछ सवालात आज भी अनसुलझे हैं. जैसे उनकी हत्या की साजिश के पीछे कौन था, क्या उन्हें गोली मारी गई थी, क्या उनकी सुरक्षा में जानबूझकर लापरवाही बरती गई, आदि, आदि. इतना लंबा अर्सा गुजर जाने के बाद भी पाक सरकार इन सवालातों के उत्तर नहीं खोज पाई है जबकि भुट्टो के पति आसिफ अली जरदारी मुल्क की सर्वोच्च कुर्सी पर विराजमान है. सरकार बैत्तुल्लाह महसूद को कातिल करार दे चुकी है, पर महसूद इससे इंकार करता रहा है. इन सब के बीच संयुक्त राष्ट्र से भी जांच कराने की बातें कही जाती रहीं लेकिन दिसंबर 2007 से अब जाकर यूएन काम शुरू करने जा रहा है. संयुक्त राष्ट्र में चिली के राजदूत हेराल्डो मुनोज के नेतृत्व में इंडोनेशिया के एक पूर्व एटॉर्नी जनरल और आयरलैंड के एक पूर्व पुलिस अधिकारी को जांच का जिम्मा सौंपा गया है. यह जांच छह महीने चलेगी और ये पता लगाने की कोशिश की जाएगी की भुट्टो की हत्या के मामले में तथ्य क्या है और किन परिस्थितियों में उनकी हत्या हुई. यहां ये काबिले गौर है कि अगर तालिबानी लीडर बैतुल्ला महसूद बेनजीर की हत्या में शामिल था, जैसा की सरकार कहती रही है तो फिर उसे पकड़ने की वाजिब कोशिशें क्यों नहीं की गईं. जरदारी साहब अगर चाहते तो सबकुछ मुमकिन था, वह बेनजीर के पति और राष्ट्रपति होने के नाते उनके कातिलों को बेनकाब करने के लिए कई उच्च स्तरीय जांच कमेटियां गठित कर सकते थे, हालांकि उन्होंने यूएन से 30 मिलियन डॉलर की
महंगी जांच कराने का फैसला ारूर लिया मगर इन सब में इतना वक्त निकल गया कि अब शायद अंतरराष्ट्रीय जांच एजेंसी भी कुछ खास हासिल न कर पाए. जरदारी साहब भुट्टो के सुरक्षा प्रमुख और एकमात्र चश्मदीद गवाह खालिद को भी नहीं बचा सके, कुछ अज्ञात हमलावरों ने उनकी गोली मारकर हत्या कर डाली.
खालिद को संयुक्त राष्ट्र की जांच टीम के सामने भी गवाही देने थी, जिसे काफी अहम माना जा रहा था. मुंबई हमले के बाद चौतरफा दबाव के बीच जिस तरह से पाक सरकार ने चंद हफ्तो में ही व्यापक कार्रवाई को अंजाम दिया उसे लेकर मुल्क में यह बातें कही जाने लगी कि जब इस मामले में गजब की तत्परता बरती जा सकती है तो बेनजीर हत्या कांड में सुस्त रवैया क्यों अपनाया जा रहा है. मतलब पाक का आवाम भी यह स्वीकार करता है कि सरकार भुट्टो प्रकरण में ईमानदारी नहीं बरत रही है. अब यह सवाल उठना जायज है कि आखिर ऐसा क्यों, अगर पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) सत्ता से बेदखल होती या जरदारी दरकिनार कर दिए होते तो ऐसी स्थिति स्वीकारयोग्य हो सकती थी मगर पीपीपी के सत्ता में और जरदारी के राष्ट्रपति होने के बावजूद भुट्टो हत्या कांड को गंभीरता से न लेना उनकी मंशा पर शक जाहिर करता है. बेनजीर की हत्या के बाद पहले उनकी वसीयत को लेकर और बाद में उनके खासमखास से तकरार को लेकर भी जरदारी की भूमिका को संदेह घेरे में आ चुकी है. हस्तलिखित वसीयत में भुट्टो ने कहा था, मैं चाहूंगी कि मेरे पति आसिफ अली जरदारी तब तक अंतरिम तौर पर आपका नेतृत्व करें जब तक कि आप और वे तय नहीं कर लेते कि पार्टी के लिए सबसे अच्छा क्या है. मैं ऐसा इसलिए कह रही हूँ क्योंकि वे एक साहसी और आदरणीय आदमी हैं. उन्होंने साढ़े ग्यारह साल जेल में बिताए लेकिन तमाम यातनाओं के बावजूद झुके नहीं. उनका राजनीतिक कद इतना बड़ा है कि वे पार्टी को एकजुट रख सकें. एक पन्ने की इस वसीयत पर 16 अक्टूबर की तारीख दर्ज थी. बेनजीर उसके दो दिन बाद ही आठ साल के निर्वासन के बाद पाकिस्तान लौटी थीं. यानी उनके पाक जाने से पहले ही ये साफ हो गया था कि अगर उन्हें कुछ होता है सारी विरासत कौन संभालेगा. भुट्टो की मौत को लेकर पीपीपी ने उस वक्त राष्ट्रपति रहे मुशर्रफ को भी दोषी ठहराया, इसका आधार उन पत्रों को बनाया गया जिसमें भुट्टो ने पर्याप्त सुरक्षा न मिलने की बातें कहीं. दरअसल मुशर्रफ को बेनजीर से शिकस्त का खौफ था इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता लेकिन ऐसे वक्त में जब सब उनके खिलाफ जा रहा हो वो भुट्टो को मरवाकर सहानभूति की लहर पीपीपी के पक्ष में मोड़ने की भूल शायद नहीं करते.
बेनजीर की हत्या से उन्हें सिर्फ और सिर्फ नुकसान की उठाना पड़ा और उन्होंने उठाया भी. जहां तक बात रही अलकायदा या तालिबान की तो वो किसी महिला पर इस तरह के हमले से इंकार करते हैं और उनका रिकॉर्ड भी इसकी गवाही देता है. यानी कोई ऐसा शक्स जिसे भुट्टो के जाने का सबसे यादा फायदा होता वो इस हत्याकांड को अंजाम देने के बारे में सोच सकता था, यहां से अगर सोचें तो जरदारी के अलावा ऐसा कोई दूर-दूर तक नजर नहीं आता. जरदारी का जिस तरह का ट्रैक रिकॉर्ड रहा है उस पर गौर फरमाया जाए तो इस बात से इंकार करना थोड़ा और मुश्किल हो जाएगा. जरदारी साहब रईस घराने से रहे हैं, शादी से पहले उनकी अख्याशियों के किस्से किसी से छिपे नहीं है. बेनजीर के साथ उनकी शादी घरवालों की रजामंदी से हुई थी, शादी के बाद उनके आशियाना शौक में भले ही थोड़ी कमी आई हो मगर अपराधिक प्रवृत्ति की रफ्तार तेजी होती चली
गई. उन पर एक ब्रिटिश डेवलेपर की हत्या की कोशिश का इल्जाम लगा, जिसे जरदारी और उनके साथियों ने मौत की दहलीज तक पहुंचा दिया था, उन पर भुट्टो के भाई की हत्या का भी आरोप लगा, हालांकि वो इससे इंकार करते रहे. जब बेनजीर भुट्टो सत्ता में आई तो उनके लिए नए पद का सजृन किया गया, उन्हें इनवेस्टमेंट मिनिस्टर बनाया गया. जरदारी साहब ने इस पद पर रहते हुए खूब धन बटोरा, उन्हें पाकिस्तान में मिस्टर 10 पसर्ेंट के नाम से जाना जाने लगा.
वे कई बार गबन, भ्रष्टाचार के मामलों में अंदर-बाहर होते रहे. मुल्क के साथ-साथ पार्टी में भी उनकी पहचान महज बेनजीर के पति तक ही सीमित हो गई. जरदारी को इस बात का निश्चित ही इल्म होगा कि अगर लंबे अर्से के बाद पाक लौट रहीं बेनजीर को कुछ हो जाता है तो उसका सीधा फायदा उन्हें ही मिलेगा, सहानभूति की लहर उनकी पुरानी पहचान मिटा देगी और उन्हें महज बेनजीर के पति ही हैसीयत से आगे निकलने का मौका मिल जाएगा. इस बात से खुद जरदारी भी इंकार नहीं कर सकते कि अगर बेनजीर जिंदा रहती तो उन्हें कभी इतने ऊपर आने का मौका नहीं मिलता क्योंकि पार्टी में ही उन्हें नापसंद करने वालों की अच्छी खासी तादाद है. सत्ता में आने से पहले तक भुट्टो हत्याकांड की जांच को जोर-शोर से उठाने वाले जरदारी की सत्ता पर काबिज होने के बाद खामोशी उनके खिलाफ पैदा धारणा को और बलवती बनाती है.
1 comment:
हम अपना सर क्यों खपायें. हमारी समस्याएं क्या कम हैं. यदि ज़रदारी ने ही बेनजीर को मरवाया हो तो इसमें आश्चर्य क्या है. यह तो उनकी संस्कृति रही है.
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