घपले-घोटालों की चर्चां के बीच आजकल एक और खबर सुर्खियों में है, वो है बाबा रामदेव और कांग्रेस की जुबानी जंग। इस जंग की सही मायनों में शुरूआत हुई कांग्रेस सांसद निनोंग एरिंग णके बयान से। अरुणाचल के सांसद साहब बाबा की भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम से इस कदर आहत हुए कि उन्होंने अपशब्द तक कह डाले। बाबा की मानें तो एरिंग ने एंग्री यंगमैन की भूमिका उन्हें ब्लडी इंडियन और न जाने क्या-क्या कहा। सांसद महोदय ने बाबा को धमकी भी दी कि अगर उन्होंने भ्रष्टाचार विरोधी अभियान बंद नहीं किया तो गंभीर नतीजे भुगतने होंगे। गंभीर नतीजों से उनका इशारा किस तरफ था ये तो वही बता सकते हैं, लेकिन इस तरह की भाषा एक सांसद के मुंह से अच्छी नहीं लगती। जिम्मेदार पद पर काबिज होने के बाद अपनी जिम्मेदारी समझना हमारे नेता पता नहीं कब सीखेंगे। वैसे देखा जाए तो राजनीति में सफलता के लिए बदजुबानी और दबंगई आजकल मूलमंत्र बन गए हैं। जो जितना बड़ा दबंग, वो उतना ही बड़ा नेता। यही वजह है कि संसद तक पहुंचने वाले माननीयों में आपराधिक छवि वालों की भी अच्छी-खासी तादाद होती है। खैर ये एक अगल मामला है, हम अपने मूल मुद्दे पर लौटते हैं। एरिंग द्वारा शुरू की गई जुबानी जंग को और तीखा बनाया शब्दबाणों के लिए मशहूर हो चुके दिग्विजय सिंह ने। दिग्गी राजा ने रामदेव को संपत्ति के खुलासे की चुनौती दी, इसके जवाब में बाबा ने भी गांधी-नेहरू परिवार को निशाना बनाया।
कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह की दूसरों पर कटाक्ष करना आदत सी बन चुकी है। कुछ दिनों पहले तक वो भगवा आतंकवाद के नाम पर भाजपा और संघ को घेरे हुए थे, और अब योगगुरु को उनका नया टारगेट हैं। ऐसा लगता है जैसे कांग्रेस ने उन्हें इसी काम के लिए रखा हुआ है कि जब भी कोई सरकार की तरफ ढ़ेढी निगाह करे बस बरस पड़ो। रामदेव कुछ समय से कालेधन और भ्रष्टाचार को लेकर सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं। उन्होंने तो संकेत दिए हैं कि उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव से वो अपनी राजनीतिक पारी शुरू कर सकते हैं। संभव है कि इसी के चलते वो दिग्गी की आंखों की किरकिरी बने हुए हों। दिग्गी राजा का सवाल है कि आखिर बाबा के पास इतने दौलत आई कहां से? भले ही कांग्रेस महासचिव की ये सवाल विशुध्द राजनीति से प्रेरित हों, पर सवाल तो हैं। बाबा के बारे में कहा जाता है कि वो एक जमाने में साइकिल से चलते थे और ये जमाना यादा पुराना भी नहीं है। अखाड़ा परिषद के बाबा हठ योगी ने हाल ही में कहा था कि रामदेव के पास साइकिल का पंचर बनवाने के पैसे नहीं थे। पर योगगुरु आज हेलीकॉप्टर से सफर करते हैं। उनका खुद का आइलैंड भी है, जिसकी कीमत 20 लाख स्टर्लिंग पाउंड है। बाबा के आश्रमों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। हरिद्वार से लेकर अरावली की पहाड़ियों और स्कॉटलैंड तक में बाबा के आश्रम हैं। उनका ट्रस्ट दुनिया भर में अपने उत्पाद बेचता है। णखबरों की अगर मानें तो करीब तीन साल पहले रामकिशन यादव उर्फ बाबा रामदेव ने खुद स्वीकारा था कि उनका सालाना करोबार एक लाख करोड़ का होने वाला है। कहा तो ये भी जाता है कि पंताजलि योग की शाखाएं ब्रिटेन, अमेरिका, थाइलैंड, नेपाल, दक्षिण अफ्रीका और दुबई तक में खुल गई हैं। आठ सौ बीघा में बने पंतजलि योग ग्राम में फाइव स्टार संस्कृति वाला पंचकर्म सेंटर है। इसके साथ ही पंतजलि में गोशाला की स्थापना की गई है, बाबा के पास करीब 500 गाये हैं, जिनमें विदेशी नस्लों की तादाद सबसे यादा है। बाबा ने 2009 में हरिद्वार में 125 एकड़ खेती की जमीन पर एक कंपनी की शुरूआत की थी।
रामदेव के इस मेगा फूड पार्क की कुल लागत 500 करोड़ रुपए आने का अनुमान है। पहले चरण में 250 करोड़ रुपए की लागत आई जबकि दूसरे चरण ढाई सौ करोड़ की लागत का अनुमान है। बाबा आज के वक्त में किसी सेलिब्रिटी से कम नहीं, देश से लेकर विदेशों तक में उनके सैकड़ों भक्त हैं। इस बात में कोई दोराय नहीं कि उन्होंने फिर से योग को जीवित किया है, लेकिन सिर्फ योग के सहारे इतनी तेजी से संपत्ति अर्जित करना संदेह तो पैदा करता ही है। बाबा की संपत्ति को लेकर सवाल सिर्फ दिग्विजय सिंह ने ही नहीं किया है कुछ दूसरे संगठन भी इसका खुलासा चाहते हैं। दरअसल बाबा राजनीतिज्ञों के साथ-साथ कई संगठनों के निशाने पर हैं, इसकी मूल वजह है उनका योग के अलावा दूसरे क्षेत्रों में हस्तक्षेप। एक जमाने में लालू प्रसाद यादव रामदेव के मुरीद थे, मगर आज वो उनकी मुखालफत करने से पीछे नहीं हटते। कुछ वक्त पहले लालू ने कहा था, रामदेव खुद को अच्छा साबित करने के लिए देश के हर नेता की आलोचना करते हैं, वो बौरा गए हैं। राजद प्रमुख तो यहां तक कह गए थे कि अगर हमने बाबा को नहीं बचाया होता तो वो बहुत पिटे होते। लालू जैसी खीज दूसरे नेताओं की भी है। पूर्व स्वास्थ्यमंत्री अंबूमणि रामदेव से लेकर सीपीएम नेता वृंदा करात तक बाबा से खार खाए बैठे हैं। वृंदा करात ने आरोप लगाया था कि रामदेव आयुर्वेद दवाओं में हड्डियों का प्रयोग करते हैं। योग से कैंसर मिटाने के दावे को लेकर बाबा का अंबूमणि से विवाद खूब चर्चा में रहा था। हाल ही में समलैंगिकता के मुद्दे पर उनका बॉलिवुड अभिनेत्री सेलीना जेटली से टकराव हुआ, ये बात सही है कि दूसरे नागरिकों की तरह बाबा को भी अपना मत रखने का हक है। लेकिन उन्हें संवेदनशील मुद्दों को छेड़ते वक्त थोड़ा सावधानी से काम लेना चाहिए। वैसे ये सोचने वाली बात है कि एक जमाने में कांग्रेस के करीबी कहे जाने वाले बाबा अचानक से कांग्रेस विरोधी कैसे हो गए। 2009 में जब बाबा ने अपना फूड पार्क बनाया था तो उसके लिए सरकार से ही सहायता मिली थी।
खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय ने बाबा को 50 करोड़ रुपए का अनुदान दिया था। और तो और केंद्रीय रायमंत्री सुबोधकांत सहाय के गृहक्षेत्र रांची में भी एक फूड पार्क की आधारशिला रखी गई थी, जिसमें बाबा सरकार के सहयोगी थे। उस दौरान बाबा की संघ और विहिप से दूरी भी साफ तौर पर देखी जा सकती थी। रामदेव ने संघ समर्थित बैठकों तक में जाना बंद कर दिया था। बहरहाल अब दोनों एक दूसरे पर तीर ताने खड़े हैं, बाबा की संपत्ति को लेकर जो संशय है उसका समाधान होना चाहिए। लेकिन इसके पीछे राजनीति उचित नहीं। जिस तरह से कांग्रेस सांसद बाबा के खिलाफ लामबंद हैं, उसमें साफ तौर पर सियासत नजर आ रही है। रामदेव यदि कालेधन का मुद्दा उठा रहे हैं तो उससे कांग्रेसियों को मिर्ची नहीं लगनी चाहिए। जिस तरह का रवैया दिग्विजय सिंह और निनोंग एरिंग ने अपनाया है उससे उनका खुद का और कांग्रेस का ही नुकसान है।
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