Friday, November 20, 2009

गौरेया नहीं बनाती मर्द

नीरज नैयर
मनुष्य हमेशा से ही अपने फायदे के लिए दूसरों को कुर्बान करता रहा है. यहां तक कि अपने सगे-संबंधियों को भी. प्रकृति को संतुलित करने वाले मूक जानवर-पक्षी हमेशा से उसका शिकार बनते आए हैं. यह मनुष्य की लालसा का ही नतीजा है कि कभी भारत में प्रचुर मात्रा में पाए जाने वाले बाघ अब विलुप्ती के कगार पर पहुंच गये हैं. ताजा गणनाके अनुसार देश में मात्र 1411 बाघ ही बचे हैं जबकि 2001 में करीब 3500 बाघ होने का दावा किया जा रहा था. हालांकि पश्चिम बंगाल के सुंदरवन और झारखंड में बाघों की गिनती को अंजाम नहीं दिया जा सका था.

सुंदरवन में कुछ समय पहले तक 250 बाघ थे लेकिन अब वहां केवल 60-70 ही बचे हैं. इसी तरह झारखंड में बाघों की संख्या 60-70 से घटकर 1-2 होने का अनुमान है. ऐसे में अगर इन दोनों क्षेत्रों के अनुमानित आंकड़ों को मिला भी लिया जाए तो बाघों की कुल संख्या 1500 से कम ही रहने वाली है. बीते चंद दिनों में ही जिस तरह से शिकार की घटनाएं सामने आई हैं उसके बाद 1400 का आंकड़ा छूना भी मुश्किल ही नजर आ रहा है. संगठित आपराधिक गिरोह वन्यजीवों की खालों की तस्करी में लगे हुए हैं. इसके साथ ही बाघों के सफाए का एक सबसे बड़ा कारण अंधविश्वास भी है. यह भावना प्रचुर मात्रा में जनमानस के मस्तिष्क में बैठ ही दी गई है कि बाघ के अंग विशेष से निर्मित दवाईयां यौन शक्ति बढ़ाने में कारगर हैं. बाघ, मॉनीटर छिपकलियों और भालू के गॉल ब्लेडर के साथ-साथ अब एक नया नाम इस कड़ी में और जुड़ गया है वो है गौरेया. पेड़ों पर चहकती मिल जाने वाली गौरेया भी अब ओझल होती जा रही है. उन्हें पकड़कर कामोत्तेजक के रूप में बेचा जा रहा है. देशभर में पशु-पक्षियों का अवैध व्यापार बड़ी तेजी से फल-फूल रहा है, मुंबई का क्रॉफर्ड बाजार इसका सबसे बड़ा केंद्र है. सबकुछ जानते हुए भी पुलिस इन मामले में कोई कार्रवाई नहीं करती क्योंकि उसे ऐसी जगहों से खामोश बैठने के लिए पर्याप्त रकम मिल जाया करती है. मुंबई का कोई भी पशु कल्याण संगठन उस बाजार में छापा मारने का साहस नहीं करता.

क्रॉफर्ड बाजार में हर दिन औसतन करीब 50,000 पक्षी खरीदे-बेचे जाते हैं. कामोत्तेजना बढ़ाने की दवा का व्यापार करने वालों के लिए गौरेया सबसे सरल टारगेट रही है. गौरेया को पकड़ने के लिए उन्हें जंगलों में डेरे नहीं डालने पड़ते, शहरों में घूम-घूमकर आसानी से उन्हें पकड़ा जाता है. जानकारों के अनुसार, इस पक्षी की मांग में हाल में काफी वृध्दि हुई है. दरअसल, कुछ हकीम समय-समय पर यह दावा करते रहते हैं कि उन्होंने गौरेया के मांस से एक ऐसी दवा तैयार की है, जो कामोत्तेजक का काम करती है, इसलिए इसकी मांग अप्रत्याशित तौर से बढ़ी है. ऐसा नहीं है कि नीम-हकीमों के इस अंधविश्चास का केवल अनपढ़ लोग ही हिस्सा बनते हैं काफी तादाद में अमीर उद्योगपति तथा फिल्मी सितारे भी ऐसी दवाओं के इस्तेमाल में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं. इन पक्षियों को नाइलॉन के जाल के जरिये पकड़ा जाता है. चूंकि गौरैया छोटी होती है, इसलिए कामोत्तेजक दवा की एक खुराक बनाने के लिए कई गौरैयाओं की कुर्बानी दी जाती है. अन्य पशु-पक्षियों की तरह गेंडे और हाथियों को भी उसके सींगों के लिए लगातार मारा जा रहा है, गेंड़ों की तदाद तो पहले से ही कम थी अब हाथियों की संख्या में भी तेजी से कमी आ रही है. अभी सरकारी अमले से लेकर हर किसी का ध्यान इस वक्त बाघों पर केंद्रित है इसलिए हाथियों की संख्या के बारे में सोच-विचार नहीं किया जा रहा है. लेकिन हकीकत ये है कि अगर जल्द ही इस दिशा में नहीं सोचा गया तो इनकी हालत भी बाघ जैसी हो जाएगी.

कुछ वक्त पहले पूर्व केंद्रियमंत्री एवं जानी-मानी पशुप्रेमिका मेनका गांधी का एक लेख प्रकाशित हुआ था उसमें उन्होंने इन भ्रांतियों पर से पर्दा उठाने की सार्थक कोशिश की थी. उसमें कहा गया था कि कोई भी पशु किसी को मर्द नहीं बना सकता. वह केवल कैल्शियम अथवा प्रोटीन देता है, जिन्हें आप पौष्टिक भोजन में कहीं ज्यादा मात्रा में पा सकते हैं. वियाग्रा क्या करती है? यह केवल नाइट्रिक ऑक्साइड छोड़ती है, जो रक्त वेसल्स को खोल देता है और अधिक रक्त का प्रवाह होने लगता है. रक्त के संचालन से कोई भी छेड़छाड़ डिस्फंक्शन में परिणत होती है. जाहिर है, यदि आप अपनी उंगली में रक्त-प्रवाह रोक लें, तो वह भी हिल नहीं पाएगी. शरीर रक्त द्वारा चलाई जाने वाली एक मशीन है. अधिक कार्बोहाइड्रेट तथा गलत प्रकार के वसा वाले भोजन आर्टरियों को अवरुध्द कर देते हैं. यदि रक्त वेसल्स उचित रूप से रक्तऑक्सीजन को नहीं ले जा पाती, क्योंकि वे संकरी तथा वसा से भरी हुई है, तो शरीर टूटने लगता है. और जिस प्रकार हृदय को ले जाने वाली आर्टरियों में ब्लॉकेज होने से हृदयाघात हो सकता है और मस्तिष्क में जाने वाली आर्टरियों में रक्त के रुकने से दौरा पड़ सकता है, उसी प्रकार जब जननांगों को जाने वाली आर्टरिया बंद होती हैं, तो स्वाभाविक रूप से शरीर का वह भाग भी काम करना बंद कर देगा.

इसलिए यदि आप मर्द बनना चाहते हैं, तो गौरैया या कोई और पशु-पक्षी आपको मर्द नहीं बना पाएगा. ऐसा भोजन तथा जीवन-शैली में परिवर्तन से हो सकता है. कम वसा वाला शाकाहारी भोजन, हलका व्यायाम, तनाव को रोना और धूम्रपान न करने का संयोजन आपकी आर्टरियों को खुद-ब-खुद साफ कर देगा. लिहाजा महज अंधविश्वास या अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए प्रकृति तंत्र को नुकसान पहुंचाने से अब हमें बाज आना चाहिए, अन्यथा हमें इसके दूरगामी परिणाम भुगतने होंगे.

3 comments:

kishore ghildiyal said...

sahi farmaya hain aapne

Udan Tashtari said...

महज अंधविश्वास या अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए प्रकृति तंत्र को नुकसान पहुंचाने से अब हमें बाज आना चाहिए, अन्यथा हमें इसके दूरगामी परिणाम भुगतने होंगे.


-सही संदेश!!

Aarti said...

You are right. It should be stopped.