Friday, June 19, 2009

ड्रेस कोड लागू करना गुनाह तो नहीं

नीरज नैयर
हाल ही में मैंने अमर उजाला में प्रकाशित एक समाज सेविका का लेख पड़ा जिसमें उन्होंने पुरुषों के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए ड्रैस कोड की जमकर मुखालफत की. उनकीनजर में कॉलेजों में पढ़ने वाली लड़कियों के लिए ड्रेस कोड लागू करना समाज का तालिबानिकरण करने जैसा है. मोहतरमा उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले के चार कॉलेजों में छात्राओं को जींस-टॉप पहनने पर लगाई गई पाबंदी से काफी आहत थीं, कॉलेज प्रशासन ने महिला शिक्षकों को भी स्लीवलेस परिधान न पहनकर आने को कहा है. एक महिला होने के नाते उनके इस तरह के तेवर लाजमी हैं.

तमाम अधिकारों के बावजूद आज भी महिलाएं खुद को वंचित तबके का समझती हैं उन्हें लगता है कि उन्हें वैसी स्वतंत्रता नहीं मिल पाई है जैसी किसी पुरुष के पास होती है, जबकि हकीकत इससे कहीं जुदा है. थोड़ा पीछे नजरें घुमाकर देखने से ही ज्ञात हो जाएगा कि कल की और आज की नारी में, उसके रहन-सहन में और उसकी आजादी में कितना बदलाव आया है. आज महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं, हर क्षेत्र में उन्हें पुरुषों के समान अवसर दिए जा रहे हैं. ऐसे में ड्रैस कोड जैसे फैसलों को तालिबानी मानसिकता कैसे करार दिया जा सकता है. बल्कि ये तो वो फैसले हैं जो अमीरी-गरीबी के कारण उपजने वालीर् ईष्या, कुंठा की भावना को दूर करते हैं. अगर सब एक जैसी पोशाक पहनकर आएंगे तो सस्ती-महंगी, अच्छी-बुरी का फर्क ही नहीं रह जाएगा. जब टॉप मोस्ट बिजनिस स्कूल्स ड्रेस कोड लागू कर सकते हैं तो फिर कॉलेज स्तर पर इसे लागू करने में इतना हंगामा क्यों मचाया जाता है. बेंगलुरु स्थित प्रख्यात क्राइस्ट यूनिवर्सटी में पढ़ने वाली छात्राओं को तो हॉस्टल से भी जींस-टीशर्ट या स्पीवलेस पहनकर बाहर निकलने की इजाजत नहीं है. कॉलेज में लड़कियों को सिर्फ सलवार-सूट पहनना पड़ता है, ऐसा ही सूरते हाल देश के अन्य प्रोफेश्ल कॉलेजों का भी है. वहां पढ़ने वाले छात्र-छत्राओं ने तो कभी इसके खिलाफ आवाज बुलंद नहीं की, क्योंकि वो वहां केवल शिक्षा अर्जित करने के लिए गये हैं. कोई माने या न माने मगर सच यही है कि आज कॉलेज शिक्षा के केंद्र की जगह फैशन का अखाड़ा बन गये हैं, दिल्ली विश्वविद्यालय इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं. यहां पढ़ने आनी वाली युवतियां ऐसी-ऐसी पोशाकें पहनकर आती हैं कि एक बारगी तो बॉलीवुड में काम करने वाली बालाएं भी असल जिंदगी में उन्हें देखकर शर्मसार हो जाएं.

स्कूल-कॉलेजों की बात तो छोड़िए आम जीवन में ही मॉर्डन बनने के नाम पर जो पहनावा अपनाया जा रहा है वो शालीनता की परिभाषा के इर्द-गिर्द भी नहीं ठहरता. चुस्त जींस, चुस्त टीशर्ट और उनके बीच में से झलकता पेट आज का फैशन सिंबल है. कमर से करीब दो-तीन उंगल नीचे जींस बांधना यौवन में निखार का पैमाना माना जाता है. यह बात सही है कि सबको अपनी तरह से जिंदगी जीने की स्वतंत्रता है, हमारा संविधान इसकी पूरी इजाजत देता है लेकिन फैशन के नाम पर फूखड़ता और अंगप्रदर्शन कहां तक जायज है. जो लोग कहते हैं कि बलात्कार जैसे मामलों को पहनावे से जोड़कर नहीं देखना चाहिए वो बिल्कुल ठीक हैं, बलात्कार जैसे विचार केवल घृणित दिमाग की उपज ही हो सकते हैं लेकिन कहीं न कहीं भड़काऊ परिधानों की उस उपज को उग्रता में परिवर्तित करने की भूमिका से भी इंकार नहीं किया जा सकता. ऐसे लोग टीवी पर जो कुछ देखते हैं उसका सजीव चित्रण उन्हें अपने आस-पास ही हो जाता है, जो कुंठा उनके मन में काफी वक्त से कुंचाले मार रही थी उसका प्रभाव तेज हो जाता है और वो किसी ऐसे काम को अंजाम दे बैठते हैं जिसके लिए उन्हें फांसी पर भी लटकाया जाए तो कम है. कहने का मतलब यह कतई नहीं कि महिलाएं पसंदीदा परिधान पहनना ही छोड़ दें, बिल्कुल पहनें लेकिन अगर उसमें शालीनता और सभ्यता दिखाई दे तो बुराई क्या है.

णड्रेस कोड लागू करनाा या महिलाओं को संजीगदी भरे पहनावे की नसीहत देना तालिबानिकरण नहीं हो सकता, तालिबान के राज में महिलाओं को ऐसी जिंदगी जीनी पड़ती थी जिसकी कल्पना भी हमारा समाज नहीं कर सकता. आज भी अफगानिस्तान में तालिबान के डर से महिलाएं किसी पुरुष का हाथ थामकर अपने प्यार का इजहार नहीं कर सकती, अपनी पसंद की पोशाक नहीं पहन सकती, खुलकर अपनी बात नहीं कह सकतीं. पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान की स्वात घाटी से भी तालिबान की महिलाओं पर बंदिशें लगाने की खबरें अक्सर आती रहती हैं. ईरान में तो कपड़े पहनने की तरीके को लेकर कानून इतने सख्त हैं कि उनका उल्लघंन करने वाली महिलाओं को जुर्माना अदा करना पड़ता है. कुछ वक्त पहले वहां पुलिस ने यह सुनिश्चित करने के लिए अभियान चलाया था कि महिलाएं हिजाब ठीक तरह से पहने.ईरान की राजधानी तेहरान की सड़कों पर इस अभियान को लागू कराने के लिए करीब 200 अतिरिक्त पुलिस अधिकारी लगाए गये. जो महिला छोटे जैकेट, पतले हिजाब या फिर ऐसे पोशाक पहनते देखी गईं जिनमें उनका पैर दिखता हो, उन पर 55 डॉलर तक का जुर्माना लगाया गया. इसके उलट भारत में महिलाओं को अपने निर्णय खुद लेने की आजादी है, सिर उठाकर चलने का अधिकार है, क्या यह समाज के तालिबानिकरण में बदलाव के संकेत हैं, शायद नहीं. जो लोग अब भी ढिंढोरा पीट रहे हैं कि महिलाओं के साथ अन्याय हो रहा है, उन्हें आगे बढ़ने का मौका नहीं दिया जा रहा है उन्हें चंद मिनट शांति से बैठकर पुर्नविचार करने की जरूरत है. ड्रैस कोड लागू करना या न करना यह कॉलेज प्रशासन का अपना निजी फैसला है, और जो सही मायनों में वहां पढ़ने जाते हैं वो कभी इसका विरोध नहीं करेंगे. यह वक्त इस तरह के फैसलों पर सवालात करने के बजाए गौर फरमाने का है कि आखिर ऐसी नौबत आई ही क्यों. खूबसूरती हमेशा सादगी में ही होती है, अगर युवतियों को यह बात समझ में आ जाए तो इतना बखेड़ा खड़ा ही क्यों हो.

11 comments:

श्यामल सुमन said...

दोनों पक्षों के के लिए अलग अलग है तर्क।
वस्त्र अगर शालीन हो क्या पड़ता है फर्क।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.

Anonymous said...

Dress और Uniform में अंतर जब समझ में आये तब तो लोग चुप हों.

व्यक्तिगत मत में, मैं समानता के सूचक सार्वजनिक विशिष्ट स्थानों पर यूनिफॉर्म के पक्ष में हूँ फिर चाहे वह स्थान अस्पताल हो, मंदिर हो, एयरलाईन हो, रेस्टारेंट हो, अदालत हो, स्कूल हो, कॉलेज हो, कारखाना हो या फिर कारावास।

ड्रेस तो वैवाहिक समारोह, फैशन शो, फैंसी ड्रेस के अच्छे लगते हैं। :-)

ghughutibasuti said...

आपकी बात से पूर्णतया सहमत हूँ। किन्तु जरा पुरुषों के लिए भी ड्रेस कोड लागू करवाइए ना!तोंदू, बद्सूरत शरीर पेन्ट कमीज,टी शर्ट में कितना भद्दा दिखता है। उसे अपने भारतीय वस्त्र कितने सलीके से ढक सकते हैं। धोती कुर्ता, कुर्ता पाजामा सही भी दिखेंगे और हमारी परम्परा व जलवायु के अनुकूल भी!
घुघूती बासूती

Swati Sudha said...

I completely disagree with such chavinistic nad orthodox views presented by Mr. Neeraj. Its easy to comment on women for anyone in India.Why aren't such restrictions imposed on Men?If the law doesn'r stop women from wearing any particular garment then who gave others the right to dictate their dress code?If any instiution is imposing a dress code it should be for both the genders

Malaya said...

मुझे तो लगता है कि ड्रेस कोड हमारे समाज में पहले से ही लागू है। बिना किसी कानूनी बन्दिश के हम शालीन और सु्रुचिपूर्ण परिधान की प्रशन्सा करते हैं और फूहड़ अंग प्रदर्शन करते कपड़ों के प्रति निन्दा का भाव रखते हैं। अब यदि कोई इस सामाजिक वर्जना को तोड़कर बदन दिखाऊ, उत्तेजक कपड़े पहनने में सुख का अनुभव करता है, ज्यादा स्वतंत्र महसूस करता है तो उसे करने दीजिए। कुछ समस्याओं का समाधान यह समाज स्वयं ढूँढ लेता है। प्रमोद मुथालिक जैसों की उपादेयता ऐसे ही थोड़े न बनी रहती है। आखिर ये न होंगी तो उस दरिन्दे को हीरो कौन बनाएगा?

ड्रेस कोड की बात करके आप राजनैतिक गलती कर बैठे हैं। यह नारी सशक्तिकरण की राह में बहुत बड़ा रोड़ा है। महिलाओं के विरुद्ध पक्षपातपूर्ण अवधारणा से ग्रस्त हैं आपके ये विचार। उन्हें अपनी लोवर वेस्ट या अन्य उभार ढंकने को तब कहिए जब सभी लड़कों को कुर्ता-धोती पहनाने का जिम्मा ले लीजिए। पहले सबको कुर्ता पायजामा सिला दीजिए ताकि वे अपनी तोंद और रोंएदार छाती छिपाकर चलें। मर्दों को ढँकने से पहले यदि आपने औरतों का कोड बनाया तो वे आपके मुँह पर चढ्ढी दे मारेंगी। यह बड़ा अफेन्सिव टाइप मामला बनता है जी। आपने लड़कियों को समझ क्या रखा है? प्रकृति ने उन्हें जो शारीरिक विशिष्टियाँ दी हैं वे क्या छिपाने के लिए दी हैं?

ss said...
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ss said...

Koi dress code awashyak nahi, kisi par bhi kuch thopna sahi nahi. Sab apni marji ki karen, acha bura kuch bhi ho, samaaj raah khud dhundh leta hai.

काशिफ़ आरिफ़/Kashif Arif said...

मैं आपकी बात से पुरी तरह सहमत हूं। आपने मेरे दिल की बात कह दी है बहुत दिनो से इस पर पोस्ट लिखने की सोच रहा थ लेकिन मेरा इन्ट्नेट कनेक्शन कुछ परेशान कर रहा है इसलिये नही लिख पाया।

एक बात मैं कहना चाहुंगा की अगर ड्रेस कोड ना हो तो अश्लिलता की ज़द मे आने वाले कपडे लडकियां ही पहनती हैं पता नही अपना ज़िस्म दिखाने मे उन्हे क्या मज़ा आता है?

लेकिन जब दिखते ज़िस्म को गौर से देखो तो छोटे कपडें को खिचं कर बडा करने की कोशिश करती है ऐसा क्यौं? जब शर्म आती है तो ऐसा कपडा पहनते ही क्यौं हो?

Gyan Bhatnagar said...

Its not TALIBANI KARAN but if colleges are applying dress codes then it should be for both (boys & girls), otherwise obviously girls will always ask why only this for Us..?

shikha said...

ap kahte hai kutsit mun wale bhadkau dress dekh k provoked hote hai. bhai sab, to unki mansikta ko badlne ka prayas kijiye. chori ho jaye to ye kahne se kam nai chalta ki tala hi kharab tha, tuta to chor ka kya dosh! ap apni manskta ko badlne ka prayas kijiye! shayad tub jyada bhala ho samaj ka!

Neeraj Nayyar said...

shiksha ka mandir keval shikshaa grahan karne ke liye hota hai.. bandishe kisi par nahi hai.
lekin chitwan ki chanchaltaa ko aaj bhi sadak chalte pachaa pana...bhartiya purush ke bas ki baat nahi hai.. soch dheere-dheere vyapak ho rahi hai...
tabtak sambhal kar chalne me harj kya hai..