Sunday, July 27, 2008

क रार पर रार, पता नहीं आधार

नीरज नैयर
हमारे देश में हर अच्छे काम के विरोध की परंपरा सी बन गई है. यहां तक की देश हित के मुद्दे भी इससे अछूते नहीं हैं. आजकल परमाणु करार को लेकर मुल्क में बवाल मचा हुआ है. संसद से लेकर सड़क तक हर कोई यही साबित करने पर तुला है कि करार किया तो देश के लिए अच्छा नहीं होगा. पर क्यों अच्छा नहीं होगा इसका जवाब किसी के पास नहीं. इक्का-दुक्का बड़े नेताओं को छोड़कर अधिकतर तो ये भी नहीं जानते कि परमाणु करार की मुखालफत के पीछे क्या कारण हैं. ऊपर वाले हल्ला मचा रहे हैं इसलिए नीचे वालों का हल्ला मचाना स्वभाविक है.

अभी हाल ही में जब एक खबरिया चैनल ने विरोध करने वाले सांसदों का विरोध ज्ञान जानने की कोशिश की तो अधिकतर को उतने ही नंबर मिले जितने शायद स्कूल के दौरान उन्हें सामान्य ज्ञान का पेपर देते वक्त मिले होंगे. 123 क्या है के जवाब में ज्यादातर बस यही कहते रहे कि हमें सब पता है, हम इसका जवाब संसद में देंगे. एक भी सांसद सीधे तौर पर यह नहीं बता सका कि उनके विरोध का आधार क्या है. कुछ ऐसा ही नजारा उस वक्त देखने को मिला था जब एक चैनल ने राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत को लेकर सांसदों से सवालात किए थे. तब भी सीधे-सीधे जवाब देने के बजाय सांसद साहेबान बगले झांकने में लगे थे. दरअसल वामदल और अन्य विपक्षी पार्टियों को आपत्ति इस बात को लेकर है कि करार हाइड एक्ट के दायरे में आता है. हाइड एक्ट अमेरिका का घरेलू कानून है जिसे दिसंबर 2006 में पारित किया गया था. करार विरोधियों का कहना है कि अमेरिका इसके कुछ प्रावधानों को भारत के खिलाफ इस्तेमाल कर सकता है. जैसे अगर भविष्य में भारत परमाणु परीक्षण करता है तो अमेरिका को परमाणु ईंधन की आपूर्ति रोकने का अधिकार होगा. इसके साथ ही समझौता रद्द होने की दशा में अमेरिका भारत को दिए गये उपकरणों को वापस मंगा सकता है.

यह एक्ट तकनीक के हस्तांतरण और दोहरे प्रयोग पर भी रोक लगता है. इस प्रकार भारत का संपूर्ण नाभकीय ईंधन चक्र कार्यक्रम खतरे में पड़ जाएगा. विरोध का एक पहलू यह भी है कि अगर भारत ईरान मसले पर अमेरिका के हितों के खिलाफ कोई भी कदम उठाता है तो संधि रद्द कर दी जाएगी. करार विरोधियों की यह चिंताए ठीक हैं मगर इस पर इतना बखेड़ा खड़ा करने की जरूरत नहीं है. क्योंकि भारत संधि में यह बात शामिल करवाने में कामयाब रहा है कि दोनों देशों में किसी प्रकार का विरोध होने पर अंतरराष्ट्रीय कानून के जरिए इसका समाधान निकाला जाएगा. विएना कन्वेशन के अनुच्छेद-27 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि कोई भी अंतरराष्ट्रीय संधि आंतरिक कानूनों से मुक्त होगी. विशेषज्ञों का मानना है कि भारत भी चाहे तो कोई आंतरिक कानून पारित कर सकता है जिसके तहत आयातित की गई कोई भी वस्तु को लौटाना संभव न हो. ऐसे स्थिति में अगर विवाद होगा तो इसका निपटारा अंतरराष्ट्रीय कानून के आधार पर ही होगा. सरकार भी अभी हाल ही में इस तरह का कानून अमल में लाने के संकेत दे चुकी है. जहां तक परमाणु परीक्षण की सवाल है तो मसौदे में इस बारे में कुछ भी स्पष्ट तौर पर नहीं कहा गया है. इसकी जगह अनपेक्षित परिस्थिति शब्द का इस्तेमाल किया गया है. मसौदे के तहत इन अनपेक्षित परिस्थितियों में भारत परमाणु परीक्षण कर सकता है लेकिन उसे पहले अमेरिका को सूचित करना होगा. रक्षा विशेषज्ञ सी.उदय भास्कर के मुताबिक इस समझौते से जुड़े 123 एग्रीमेंट की धारा 6 और 14 में यह भी प्रावधान है कि यदि भारत अपनी सुरक्षा जरूरतों को ध्यान में रखकर परीक्षण करता है तो अमेरिका सकारात्मक रुख अपना सकता है.

करार को लेकर हमारे देश में आमतौर पर यही धारणा बन गई है कि चूंकि करार अमेरिका के साथ है इसलिए सबकुछ अमेरिका तक ही सीमित है जबकि ऐसा कुछ भी नहीं है. डील के अमल में आने के बाद न केवल परमाणु आपूर्तिकर्ता समूहदेशों का नजरीया बदलेगा बल्कि भारत परमाणु संपन्न देशों की जमात में भी शामिल हो जाएगा. करार के बाद भारत को विकसित देशों से नवीनतम परमाणु तकनीक भी हासिल हो जाएगी. अब तक भारत को यह तकनीक देने से विकसित देश साफ इंकार करते रहे हैं. शायद उन्हें इस बात का डर था कि भारत इसका इस्तेमाल सैन्य उदद्श्यों के लिए कर सकता है. डील के अमल में आने से हमें अपने परमाणु रिएक्टरों के लिए यूरेनियम हासिल हो सकेगा. देश में यूरेनियम का उत्पादन रिएक्टरों की संख्या में वृद्धि के अनुरूप नहीं बढ़ा है. इसलिए देसी रिएक्टर आजकल यूरेनियम की जबरदस्त किल्लत से जूझ रहे हैं. बिजली की समस्या जो पहले से ही विकराल रूप धारण किए हुए है आने वाले वक्त में और विकराल हो जाएगी. ऐसे में करार का देश हित में अमल में आना बहुत जरूरी है.

क्या है डील
परमाणु ऊर्जा के नागरिक इस्तेमाल के लिए भारत और अमेरिका के बीच हुए समझौते के बाद परमाणु टेक्नोलॉजी के मामले में किए जा रहे भेदभाव से भारत को आजादी मिलेगी और भारत परमाणु तकनीक की मुख्सधारा में शामिल हो जाएगा. इस डील के कुछ महत्वूर्ण प्रावधान निम्नलिखित हैं:
-अमेरिका भारत को परमाणु ईंधन की आपूर्ति करेगा और अन्य आपूर्तिकर्ता देशों से इसकी पूर्ति करने को कहेगा.
-भारत के 22 रिएक्टरों में से 14 आईएईए की निगरानी में होंगे शेष 8 रिएक्टर निगरानी मुक्त होंगे जिसका भारत सामरिक उद्देश्यों के प्रयोग के लिए इस्तेमाल करने के लिए स्वतंत्र होगा.

नीरज नैयर

3 comments:

समय चक्र said...

vicharaniy or sarahaniy post ke liye shukriya.

परमजीत सिहँ बाली said...

अच्छी खासी जानकारीयां देकर विचारणीय विषय बना दिया है।आभार।

Anonymous said...

बुरा न मानना दोस्त. पता तो आपको भी कुछ खास नहीं है, और आपको ही क्यों हममें से किसी को भी कुछ खास पता नहीं है. हमसब ज्यादा से ज्यादा जानने की कोशिश ही कर रहे हैं. हम सब.