भारत सहित विश्वभर में जिस तरह की उथल-पुथल कुछ वक्त पहले विकीलीक्स के संस्थापक जुलियन असांजे ने मचाई थी, ठीक वैसा ही इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) के पूर्व कमिश्नर ललित मोदी कर रहे हैं। सोशल मीडिया खासकर ट्विटर को अपना हथियार बनाए बैठे मोदी एक के बाद एक आरोपों के तीर दाग रहे हैं। इन तीरों ने भारतीय राजनीति के कई बड़े चेहरों को घायल किया है और कई इसकी जद में आ सकते हैं। मोदी के आरोपों में कितनी सच्चाई
है, यह बहस का मुद्दा हो सकता है। लेकिन जिस तरह से सियासी दलों के शीर्ष स्तर पर खामोशी छाई है, उससे कहीं न कहीं ये संकेत जरूर जाता है कि एक हमाम में सभी नंगे हैं। इस ललितगेट नामक भूचाल की शुरुआत हुई, लंदन के अखबार डेली मेल में छपी उस खबर से जिसमें सुषमा स्वराज का जिक्र किया गया। एक साल बाद इस मामले के यूं सामने आने को साजिश के तौर पर भी देखा जा रहा है, लेकिन इसने राजनीतिक और व्यवसायिक हितों की साठगांठ को उजागर किया है।
इस खबर का मजमून कहता है, भारत की विदेशंत्री सुषमा स्वराज ने भारतीय मूल के सांसद कीथ विज के मार्फत ललित मोदी को पुर्तगाल जाने में मदद की। कीथ ने सुषमा की सिफारिश पर वीजा आव्रजन प्रमुख सारा रैप्सन को पत्र लिख मोदी के मामले को जल्द निपटाने को कहा, उन्होंने अपने चि_ियों में सुषमा स्वराज का भी जिक्र किया था। दरअसल, मोदी अपनी पत्नी के इलाज के लिए पुर्तगाल जाना चाहते थे, लेकिन ब्रिटेन सरकार को आशंका थी कि इजाजत देने पर भारत के साथ संबंध प्रभावित हो सकते हैं। इस पर सुषमा ने ब्रिटेन को भरोसा दिलाया था कि द्विपक्षीय संबंधों पर असर नहीं पड़ेगा। ब्रिटेन से उठी इस चिंगारी ने जब भारतीय राजनीति को झुलसाया तो सुषमा स्वराज को सफाई पेश करने के लिए मजबूर होना पड़ा। विदेशमंत्री का कहना है कि मोदी ने पिछले साल जुलाई में बताया था कि उनकी पत्नी कैंसर से पीडि़त हैं, चार अगस्त को पुर्तगाल में उनकी सर्जरी होनी है और दस्तावेज पर हस्ताक्षर के लिए उनकी मौजूदगी वहां जरूरी है। इसलिए मानवीय आधार पर मैंने मोदी की मदद की। सुषमा के शब्दों को हूबहू देखें तो इसमें मानवीय पक्ष दिखाई देता है, वैसे भी हमारे देश में मुश्किल घड़ी में दुश्मन की मदद को भी जायज ठहराया जाता है। लेकिन काबिले गौर ये भी है कि सुषमा एक संवैधानिक पद पर हॅैं, जो उन्हें कानून से बच रहे किसी शख्स की मदद की इजाजत नहीं देता। आरोपों का सिलसिला यहीं खत्म नहीं होता, कहा तो यह भी जा रहा है कि मदद के ऐवज में सुषमा स्वराज के पति कौशल स्वराज को मोदी ने अपनी कंपनी इंडोफिल में निदेशक नियुक्त किया।
शुरुआत में सुषमा और उनके पति इस आरोप को सिरे से खारिज करते रहे, लेकिन जब मीडिया ने सबूत पेश किए तो सन्नाटा छा गया। व्यक्तिगत तौर पर सुषमा के लिहाज से देखा जाए तो इस इंकार ने उनकी छवि को प्रभावित किया। अगर वो पहले ही इसे स्वीकार कर लेतीं तो शायद विपक्ष के सवालों की धार कुंद पड़ जाती। सुषमा को लेकर हुए खुलासों में एक और कड़ी उनकी बेटी के रूप में जुड़ी। बांसुरी स्वराज उस टीम का हिस्सा रह चुकी हैं, जिसने उच्च न्यायालय में ललित मोदी के पासपोर्ट जब्ती का केस लड़ा। अपनी जीत के बाद मोदी ने बाकायदा ट्वीट पर जिन लोगों का धन्यवाद किया, उसमें बांसुरी का भी नाम था। मोदी ने एक साक्षात्कार में तो यहां तक कहा था कि कौशल और बांसुरी सालों तक उनका केस मुफ्त में लड़ते रहे। इससे एक बात तो साफ होती है कि मोदी और स्वराज परिवार के रिश्ते महज चेहरा पहचानने तक सीमित नहीं हैं। क्रिकेट की पिच पर विवादास्पद गेंद फेंकने वाले मोदी की राजनीतिक नजदीकियों का दूसरा खुलासा राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के तौर पर हुआ। केंद्र और राज्य में सरकार चला रही भाजपा के लिए ये दोहरा संकट था। हालांकि वसुंधरा को घेरने की चाल स्वयं मोदी की तरफ से नहीं चली गई, मगर बगैर उनकी सहभागिता के ये मुमकिन भी नहीं था। मोदी के वकील महमूद अब्बी ने विवाद बढ़ता देख एक ऐसा दस्तावेज पेश किया, जिससे इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) के जन्मदाता से राजे के संबंध उजागर होते हैं।
दस्तावेज से पता चलता है कि राजस्थान की मुख्यमंत्री ने मोदी के यात्रा आवेदन के समर्थन में हस्ताक्षर किए थे। समर्थन का मजमून कुछ ऐसा है, भारत से मैं वसुंधरा राजे ललित मोदी के आव्रजन आवेदन का समर्थन दे रही हूं, लेकिन इसके लिए शर्त यह है कि भारतीय शासन को इसका पता नहीं चलना चाहिए। मोदी और वसुंधरा राजे के रिश्ते उस जमाने से हैं, जब उन्होंने पहली बार राजस्थान की कमान संभाली थी। 2005 में मोदी ने राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन में जगह बनाई और जल्द ही वो इसके अध्यक्ष की कुर्सी तक पहुंच गए। दरअसल, वसुंधरा की मां विजया राजे सिंधिया और ललित के पिता कृष्ण कुमार मोदी अच्छे दोस्त थे। लिहाजा वसुंधरा और ललित के बीच दोस्ती न होने की कोई वजह ही नहीं बनती। खासकर राजस्थान की सियासत में ये बात जगजाहिर है कि मोदी की तरक्की में राजे का सहयोग काफी ज्यादा रहा। हालांकि, बाद में दोस्ती में दरार पड़ गई, मौजूदा खुलासे को इसी दरार के परिणाम के तौर पर देखा जा रहा है।
वैसे, ये कोई नहीं जानता कि दोस्ती के दरकने की वजह क्या रही। इन खुलासों को जब कांग्रेस ने भाजपा पर हमले के लिए इस्तेमाल किया तो मोदी के तरकश से कई और तीर निकले, जिसने काफी हद तक कांग्रेस को चुपी साधने पर मजबूर कर दिया। मोदी ने सोनिया गांधी से लेकर प्रियंका और रॉबर्ट वाडरा तक को कटघरे में खड़ा किया। इतना ही नहीं उन्होंने यह भी साफ करने का प्रयास किया कि अलग-अलग विचारधाराओं से प्रभावित नजर आने वाला सोनिया और मेनका परिवार दरअसल, पर्दे के पीछे संगठित है। मोदी का कहना है कि मेनका गांधी के बेटे एवं पीलीभीत से भाजपा सांसद वरुण गांधी ने उनसे लंदन में मुलाकात की थी। यह महज औपचारिक मुलाकात नहीं थी, इसमें वरुण ने अपनी चाची यानी सोनिया गांधी के जरिए सबकुछ ठीक करने का प्रस्ताव रखा था। ये उस वक्त की बात है जब कांग्रेस सत्ता में थी और ललित मोदी तमाम तरह की कानूनी परेशानियों का सामना कर रहे थे। ललित की मानें तो वरुण ने उनसे इटली में रह रहीं सोनिया गांधी की बहन से संपर्क करने को कहा था, जिन्होंने मामला सुलझाने के ऐवज में 360 करोड़ रुपयों की मांग की। इसलिए मामला आगे नहीं बढ़ सका। हमारे मुल्क में पैसा सबसे बड़ी ताकत है। कानूनी, प्रशासनिक या फिर कोई और, हर तरह की परेशानी नोटों पर छपे गांधी के दर्शन कर खुद ब खुद अपना रास्ता बदल लेती है। लिहाजा ऐसे परिवेश में मोदी के इन आरोपों से इत्तेफाक रखने वालों की संख्या अपेक्षाकृत ज्यादा होगी। हालांकि वरुण ने मोदी के इन आरोपों को नकार दिया है, जो कि स्वभाविक है। लेकिन वो उस ज्योतिषी और वीडियो के बारे में कुछ नहीं बोल रहे जिसका जिक्र ललित मोदी कर रहे हैं।
राजनीति में त्वरित प्रतिक्रिया देने की परंपरा है। किसी आरोप को सही साबित करना, उसके समर्थन में दलीलें पेश करना और इस्तीफे की मांग करना हमारे नेताओं के डीएनए में है। फिर भले ही उनका इससे कोई सरोकार हो या न हो। लेकिन अप्रत्याशित तौर पर मोदी के खुलासों के बाद पूरी सियासी बिरादरी जिस एक सुर में नजर आ रही है, वो है खामोशी। सोनिया गांधी का नाम सामने आने के बाद कांग्रेस की चुप्पी तो समझ आती है, मगर बाकी दल क्यों खामोश हैं? दरअसल, मोदी अब तक यह स्पष्ट कर चुके हैं कि उनके पिटारे में सबके लिए कुछ न कुछ है। शायद यही वजह है कि मायावती, मुलायम सिंह और लालू यादव सरीखे नेता भी जुबान खोलने में डर रहे हैं। यहां तक की कैंची की मानिद चलने वाली वामदलों की जुबानी धार भी कुंद पड़ गई है। मौजूदा स्थिति में यदि ललित मोदी के तीर इन नेताओं को लगते हैं तो उनके लिए भविष्य में भाजपा पर हमला बोलने की संभावनाएं तो कम होंगी हीं, जांच आदि का खतरा भी हर पल बना रहेगा।